कभी सड़कों पर पापड़ बेच किया गुजारा, फिर बनाया सुपर-30 और अब पद्म श्री से हुए सम्मानित…



मां के बनाए पापड़ों को साइकिल पर घर-घर ले जाकर बेचने वाला शख्स आज अगर गरीब बच्चों को भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) जैसी बड़ी संस्थाओं में प्रवेश कराने की ‘गारंटी’ बन जाए, तो आपको आश्चर्य होगा, लेकिन यह सच है. पटना के चर्चित सुपर-30 संस्थान के संस्थापक आनंद कुमार की कहानी कुछ ऐसी ही है.



सरकारी स्‍कूल के छात्र आनंद को शुरू से ही गणित में रुचि थी. उन्होंने भी वैज्ञानिक और इंजीनियर बनने का सपना देखा था. उनके सपने को सच करने के लिए उन्हें क्रैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में पढ़ने के लिए बुलावा भी आया, लेकिन परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण उनका सपना पूरा नहीं हो सका. इसी टीस ने उन्हें गरीब बच्चों की प्रतिभा निखारने की प्रेरणा दी.



आनंद ने बताया कि कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय तो नहीं जा पाया, इसी दौरान 23 अगस्त, 1994 को हार्ट अटैक के चलते पिता का निधन हो गया.



उनके पिता डाक विभाग में चिट्ठी छांटने का काम करते थे, परंतु उन्होंने पिता के निधन के बाद अनुकम्पा से मिलने वाली नौकरी न करने का फैसला लिया.



उनका कहना है कि सब कुछ उनकी सोच के विपरीत हो रहा था, लेकिन उन्होंने तय किया कि ‘अगर नौकरी कर लूंगा तो गणित में प्रतिभा दिखाने का मौका नहीं मिल पाएगा.’ आर्थिक तंगी के कारण घर-परिवार चलाना मुश्किल होने लगा.



तब उनकी मां आजीविका के लिए घर में पापड़ बनाने लगी और आनंद तथा उनके भाई साइकिल पर घर-घर जाकर पापड़ बेचने लगे.



जिंदगी जैसे-तैसे चलने लगी. इसके बाद आनंद ने बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने की सोची. उन्होंने घर में ही ‘रामानुजम स्कूल ऑफ मैथेमेटिक्स’ नाम से कोचिंग खोली. प्रारंभ में कोचिंग में सिर्फ दो विद्यार्थी आए. इस दौरान वे छात्रों से 500 रुपये फीस लेते थे. इसी दौरान उनके पास एक ऐसा छात्र आया, जिसने कहा कि वह ट्यूशन तो पढ़ना चाहता है लेकिन उसके पास पैसे नहीं हैं.



यह बात आनंद के दिल को छू गई और उन्होंने उसे पढ़ाना स्वीकार कर लिया. वह छात्र आईआईटी की प्रवेश परीक्षा में सफल हुआ.


आनंद कहते हैं कि यह उनके जीवन का ‘टर्निग प्वाइंट’ था. इसके बाद वर्ष 2001 में उन्होंने सुपर-30 की स्थापना की और गरीब बच्चों को आईआईटी की प्रवेश परीक्षा की तैयारी कराने लगे.



वह कहते हैं कि अब उनका सपना एक विद्यालय खोलने का है. उनका कहना है कि गरीबी के कारण कई बच्चे पढ़ाई छोड़ देते हैं और आजीविका कमाने में लग जाते हैं.



आनंद की सुपर-30 अब किसी परिचय की मोहताज नहीं है. वर्तमान में सुपर 30 में अब तक 330 बच्चों ने दाखिला लिया है, जिसमें से 281 छात्र आईआईटी की प्रवेश परीक्षा में पास हुए हैं. शेष इंजीनियरिंग संस्थान में पहुंचे हैं.



गौरतलब है कि डिस्कवरी चैनल ने सुपर 30 पर एक घंटे का वृत्तचित्र बनाया, जबकि ‘टाइम्स’ पत्रिका ने सुपर-30 को एशिया का सबसे बेहतर स्कूल कहा है. इसके अलावा सुपर 30 पर कई वृत्तचित्र और फिल्म बन चुकी हैं. आनंद को देश और विदेश में कई पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है.



INPUT: bhaskar.com
IMAGE SOURCE: GOOGLE


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