Muzaffarpur में अब भी नही चेता स्वास्थ्य विभाग, सदर अस्पताल में टॉर्च की रोशनी में होती आंखों की जांच

मुजफ्फरपुर। अंधापन निवारण कार्यक्रम का मुजफ्फरपुर जिले में बुरा हाल है। सरकारी अस्पताल में टार्च की रोशनी से मरीजों का इलाज किया जा रहा है। यह हकीकत है मुजफ्फरपुर जिले की।




सदर अस्पताल यानी जिले के सबसे बड़े अस्पताल सदर अस्पताल में आंख के इलाज के लिए एक सर्जन समेत दो चिकित्सक हैं, लेकिन वहां पर आपरेशन थिएटर नहीं रहने के कारण सिर्फ आंख की जांच की जाती है। वह भी टार्च की रोशनी में। उसके बाद मरीज को बाहर‌ से चश्मा खरीदने की सलाह दी जाती है। इस तरह का नजारा सदर अस्पताल के आउटडोर में देखने को मिल रहा है। सरकारी स्तर पर इलाज की व्यवस्था नहीं होने के कारण मरीज निजी अस्पताल में जाने को मजबूर हैं। इसका परिणाम यह हो रहा है कि अब ऑपरेशन के बाद उनकी आंख निकालनी पड़ रही है। मुजफ्फरपुर आई हॉस्पिटल में 65 मरीजों की आंख में संक्रमण के बाद 15 की आंख निकाले जाने के बाद से सरकारी सिस्टम पर सवाल है।


जानकारी के अनुसार मोतियाबिंद फ्री जिला बनाने के लिए अंधापन निवारण कार्यक्रम चल रहा है, लेकिन रोगियों की जांच व इलाज सरकारी स्तर पर हो, यह व्यवस्था नहीं है। यही हाल एसकेएमसीएच का है। वहां पर 2 साल से आई बैंक बनकर तैयार है, लेकिन वह चालू नहीं हो रहा है। सदर अस्पताल की नेत्र सर्जन डॉ नीतू कुमारी कहती हैं कि उन्होंने वरीय पदाधिकारियों को सारी स्थिति से अवगत करा दिया है। अगर उन्हें उपस्कर व ओटी की व्यवस्था हो तो वह खुद सर्जरी करने को तैयार हैं।


फिलहाल सदर अस्पताल में मरीज आते हैं उनकी आंख जांच कर चश्मा लेने की सलाह दी जाती है चश्मा वह बाहर से खरीदते हैं। जो दवा है, वह दी जाती है। अगर ज्यादा परेशानी होती है तो एसकेएमसीएच रेफर कर दिया जाता है। सदर अस्पताल में इलाज कराने आई सकरा की मधु कुमारी ने बताया कि वह गरीब है। आंख में परेशानी थी, लेकिन यहां इलाज नहीं हुआ। अब वह किसी तरह से पैसे का इंतजाम कर निजी अस्पताल में जाकर इलाज कराएगी। सरकारी व्यवस्था पर सवाल उठाया। सिविल सर्जन डॉ विनय कुमार शर्मा ने कहा कि वह इस मामले की समीक्षा करेंगे कि कहां पर कमी है। फिर उसे दूर किया जाएगा।


2010 के बाद नहीं हो पाया आपरेशन
सदर अस्पताल में विशेषज्ञ चिकित्सक डा.नीतू कुमारी व डा.वैदेही कुमारी तैनात हैं। यहां के विशेषज्ञ चिकित्सक मरीजों की जांच व आपरेशन के लिए जरूरी उपकरण की सूची उपाधीक्षक को सौंप रहे, लेकिन उसकी खरीदारी नहीं हो रही है। विभाग से मिली जानकारी के अनुसार आई बैक के लिए जिले में 22 लाख की राशि आई थी। सदर अस्पताल परिसर में पर्याप्त जगह रहने के बावजूद यहा निर्माण नहीं हुआ। उसके बाद यह राशि मुजफ्फरपुर आई हास्पीटल के पास गई, लेकिन वहां से भी राशि वापस चली गई। एसकेएमसीएच के नेत्र रोग विशेषज्ञ डा.एमके मिश्रा ने बताया कि जब वह और वरीय चिकित्सक डा.बीएस झा सदर अस्पताल में अपनी सेवा दे रहे थे।


उस समय यानी 2010 में 60 मरीज का आपरेशन किया गया। उसके बाद से वहां पर आपेरशन नहीं हुआ। ओटी की पहल हुई लेकिन वह भी चालू नहीं हो पाया। 2020 में मुजफ्फरपुर में आई बैंक बनकर तैयार है। लेकिन वह चालू नहीं हो पाया है। जानकारी के हिसाब से मानव संसाधन की कमी से वह चालू नहीं हो रहा है। जानकारी के अनुसार ट्रांसप्लाट, उसके साथ पांच चक्षु सहायक, पांच सहयोगी की जरूरत है। इसके कारण एक साल से वहां पर काम नहीं हो रहा है। जानकारी के अनुसार यदि आई बैंक चालू हो जाए तो सारण, तिरहुत व दरभंगा प्रमंडल वासियों को लाभ मिलेगा। मुजफ्फरपुर आई हॉस्पिटल में मोतियाबिंद ऑपरेशन के बाद 15 लोगों की आंख निकाल ली गई है। 22 नवंबर को 65 लोगों का ऑपरेशन हुआ था। संक्रमण के बाद अब 15 लोगों की एक आंख चली गई है। छह लोगों की आंख में संक्रमण है।जिसे निकालना पड़ सकता है।

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