बिहार में बुधवार को छात्रों ने जगह-जगह आंदोलन किया। इस दौरान कुछ जगहों पर हिंसक प्रदर्शन भी हुआ। इससे देशभर की नजरें एक बार फिर बिहार की तरफ मुड़ गई। रेलमंत्री को तुरंत आकर बयान देना पड़ा और कमेटी बनानी पड़ी। सोशल मीडिया पर तरह-तरह बातें होने लगी। कुछ लोग छात्र आंदोलन को जेपी मूवमेंट से जोड़कर देखने लगे। उनके ऐसा करने का वाजिब कारण भी है, क्योंकि इतिहास के पन्नों काे पलटेंगे तो यही सब दिखेगा। इस जमीन से जब-जब छात्रों ने हुंकार भरी है, दिल्ली की सत्ता तक हिल गई है। भले मुद्दे छोटे हों या बड़े। आज यानी शुक्रवार को छात्रों के समर्थन में विपक्षी दलों के साथ-साथ बिहार सरकार की सहयोगी पार्टी HAM ने भी बंद का ऐलान किया है। अब पढ़िए बिहार के छात्र आंदोलन का इतिहास…
पटना विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर नवल किशोर चौधरी बताते हैं कि भारत के आजाद होने के बाद बिहार में पहला छात्र आंदोलन 1955 में हुआ था। यह छात्र आंदोलन बहुत ही मामूली बात पर शुरू हुआ था। जहां विवाद राज्य ट्रांसपोर्ट टिकट काटने को लेकर हुआ था। जो बाद में इतना उग्र हो गया था कि एक छात्र की मौत हो गई थी। उस छात्र का नाम था दीनानाथ पांडे। दरअसल, दीनानाथ सड़क किनारे खड़े होकर बस हंगामा देख रहा था। जहां उन्हें पुलिस की गोली लग गई और उनकी मौत हो गई थी। इसके बाद यह आंदोलन इतना उग्र हो गया था कि बाद में तात्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू को पटना आना पड़ा था। फिर भी आंदोलनकारी छात्र नहीं माने। इसके बाद उस समय के ट्रांसपोर्ट मंत्री महेश सिंह को इस्तीफा देना पड़ा था। बाद में महेश सिंह को महामाया सिंह ने चुनाव में हरा दिया था। उसी समय उन्होंने नारा दिया था- खादी के चकमक चुनर से, दाग खून का नहीं धुलेगा…
1967 के आंदोलन के बाद तो मुख्यमंत्री हार गए थे चुनाव
प्रो. चौधरी बताते हैं, ‘1955 के बाद एक छात्र आंदोलन 1967 में हुआ था। जो गांधी मैदान के ठीक बगल में मोना टॉकीज और तमाम बिल्डिंगों में आग लगा दी गई थी। उस समय केबी सहाय मुख्यमंत्री थे। बाद में वह चुनाव हार गए और महामाया सिन्हा मुख्यमंत्री बने। महामाया सिन्हा ने इस आंदोलन में छात्रों का साथ दिया था। वो छात्रों को जिगर के टुकड़े कहा करते थे।’
1974 का आंदोलन तो इतिहास बन गया
1974 में आपतकाल के विरोध में छात्र आंदोलन शुरू हुआ था। इसी दौरान अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद और समाजवादी छात्रों ने पहली बार एकजुट होकर छात्र संघर्ष समिति का गठन कर आपातकाल का विरोध किया। इसके लालू प्रसाद यादव अध्यक्ष चुने गए थे और सुशील कुमार मोदी महासचिव चुने गए थे। इस आंदोलन में नीतीश कुमार भी सक्रिय भूमिका में थे। आपातकाल के विरोध-प्रदर्शन के दौरान बहुत से छात्रों को बेरहमी से पीटा गया और उनको जेल में बंद कर दिया गया था। नेतृत्व विहीन आपातकाल आंदोलर को नई ऊर्जा के लिया जय प्रकाश नारायण को छात्रों द्वारा आमंत्रित किया गया और उसके बाद उन्होंने ‘सम्पूर्ण क्रांति’ का नारा दिया। बाद में जेपी इसके नेता बने थे।
2010 में 8 फरवरी को कोचिंग संस्थानों के खिलाफ छात्रों का आक्रोश फूटा पड़ा था। ये आंदोलन एक निजी कोचिंग संस्थान से घटना की शुरूआत हुआ। एक छात्र द्वारा सवाल पूछने पर गालियां दी गई। छात्रों के विरोध पर धक्का मुक्की की गई। समय पर कोर्स पूरा नहीं किए जाने से छात्रों की नाराजगी पहले से ही थी। इस घटना ने आग में घी का काम किया। 9 फरवरी को शहर का एक बड़ा हिस्सा छात्रों के आक्रोश का शिकार हो गया। इस आंदोलन में एक छात्र की गोली लगने से मौत हो गई। पटना के गांधी के बाद का इलाका धूधू करके जल रहा था। आंदोलन तीन दिनों तक लगातार चला। तब बिहार सरकार ने कोचिंग विधेयक लाने की बात कही थी।
सभी कोचिंग संचालकों को कानून के दायरे में लाने की बात हुई थी। बाद में कोचिंग कानून भी बना, लेकिन कानून को अमली जामा नहीं पहनाया गया। कोचिंग संचालकों को रजिस्ट्रेशन कराने के लिए निर्देश दिए गए। लगभग करीब ढाई सौ कोचिंग संस्थानों ने रजिस्ट्रेशन कराए। सभी संस्थानों के लिए एक नियमावली तैयार की गई, जिसके तहत सभी कोचिंग संस्थानों को समय पर सिलेबस तैयार कराना था। सभी के लिए सीटों की व्यवस्था निर्धारित की गई, लेकिन एक भी कोचिंग संस्थान मानदंड पर खड़े नहीं उतर रहे हैं।
INPUT: Bhaskar