मुजफ्फरपुर। जिले में बीते साल तीन दर्जन से अधिक बार पुलिस पर हमले की घटनाएं हुईं। शराब माफिया, अपराधी को दबोचने और छापेमारी के दौरान पुलिस पर हमले किए गए।
संबंधित थानों में केस भी दर्ज है, लेकिन कार्रवाई शून्य है। पुलिस खुद पर हुए हमले के अधिकांश आरोपितों को पकड़ नहीं पा रही है। हमलावारों पर सख्त कार्रवाई नहीं कर सकी है।
इन तीन दर्जन घटनाओं में करीब 400 से अधिक अज्ञात को आरोपित बनाया गया था, लेकिन अबतक इनको चिह्नित नहीं किया जा सका है। थानों में ही फाइलें अटकी हैं। हाल में इसकी समीक्षा कर आईजी पंकज सिन्हा ने जल्द निष्पादित करने का आदेश दिया है। मोतीपुर, बरुराज, सकरा, हथौड़ी, साहेबगंज, सदर, अहियापुर थाना और उत्पाद विभाग पर शराब माफियाओं ने 15 बार हमला किए। इसके अलावा दो दर्जन बार पुलिस अपराधियों की गिरफ्तारी या छापेमारी के दौरान फंसी।
दर्जनों जवान व पदाधिकारी जख्मी व चोटिल हुए। जख्मी पदाधिकारी के बयान पर केस भी हुए। प्रारंभिक कार्रवाई के दौरान कुछ पकड़े गए, लेकिन इसके बाद कार्रवाई सुस्त पड़ गई। जबकि पुलिस के पास इन घटनाओं के सीसीटीवी फुटेज आदि भी उपलब्ध हैं। मोतीपुर, बरुराज, हथौड़ी और सकरा में पुलिस व उत्पाद विभाग की टीम पर अधिक हमले हुए। पंचायत चुनाव के दौरान भी सकरा में पुलिस पर हमला हुआ था। हमलावरों ने छह पुलिसकर्मियों पर दबिया से वार किया था।
अज्ञात का सत्यापन नहीं कर पाती पुलिस
वरीय अधिवक्ता अंजनी कुमार ने बताया कि पुलिस केस में अज्ञात के खिलाफ एफआईआर कर लेती है, लेकिन अधिकांश दफा साबित नहीं कर पाती। इस वजह से केस पेंडिंग या कोर्ट में कमजोर हो जाता है। इसका आरोपियों को सीधा लाभ मिलता है और पुलिस की कार्रवाई सिमट जाती है। रिटायर डीएसपी एसएन तिवारी ने बताया कि हमले के बाद केस होता है। आईओ इसे गंभीरता से नहीं लेते हैं। समय-समय पर वरीय पदाधिकारी को इसकी समीक्षा करनी चाहिए। जब कोई कांड होता है, तब विभाग को याद आती है अन्यथा वह फाइल थाने में धूल फांकती रहती है। अज्ञात का सत्यापन करना पुलिस के लिए बहुत जरूरी है।
पुलिस पर हमले की घटनाओं से जुड़े केस की समय-समय पर समीक्षा की जाती है। कार्रवाई भी की जाती है। आईओ को इन मामलों की कैसे जांच करनी है, इसकी भी जानकारी समय-समय पर दी जाती है।
-जयंतकांत, एसएसपी
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