अगर सैलरी इतने रुपये से भी कम है तो ‘अत्यंत गरीब’ मान जाएंगे! जानिए- कौन आता है गरीबी रेखा के नीचे?

अगर किसी व्यक्ति की सैलरी 5000 रुपये से भी कम है या कोई व्यक्ति हर रोज करीब 167 रुपये भी नहीं कमा पा रहा है तो उसे गरीब माना जाएगा. जी हां, वर्ल्ड बैंक (World Bank) बीपीएल यानी गरीबी रेखा की परिभाषा में बदलाव करने जा रहा है.

वर्ल्ड बैंक की नई परिभाषा के हिसाब से अगर कोई व्यक्ति हर दिन 2.15 डॉलर नहीं कमा रहा है तो उसे गरीबी रेखा (Poverty Line In India) से नीचे माना जाएगा. वर्ल्ड बैंक जल्द ही इस गरीबी रेखा की परिभाषा बदलेगा, जिसके बाद हर दिन की मिनिमम कमाई 2.15 डॉलर मानी जाएगी. बताया जा रहा है कि विश्व बैंक इस साल के आखिरी तक नई परिभाषा को अपना सकता है.

ऐसे में सवाल है कि आखिर वर्ल्ड बैंक किस आधार पर गरीबी रेखा की सीमा तय करता है और 2.15 डॉलर प्रति दिन की कमाई से पहले कितनी कमाई को गरीबी रेखा का मानक माना जाता था. इसके अलावा जानते हैं वर्ल्ड बैंक के नए आंकड़ों से जुड़ी क्या अपडेट है और जल्द क्या बदलाव संभव है…

क्या है नया अपडेट?

वर्ल्ड बैंक डॉट ओआरजी पर छपी एक रिपोर्ट के अनुसार, ग्लोबल पॉवर्टी लाइन यानी वैश्विक गरीबी रेखा के मानकों में बदलाव किया जा सकता है. नए मानकों के अनुसार अब 2.15 डॉलर प्रति दिन यानी 167 रुपये रुपये कम कमाने वाला व्यक्ति गरीब माना जाएगा. रिपोर्ट के अनुसार, साल 2017 की कीमतों को ध्यान में रखते हुए नई वैश्विक गरीबी रेखा 2.15 डॉलर पर निर्धारित की गई है. इसका मतलब है कि कोई भी व्यक्ति जो 2.15 डॉलर प्रतिदिन से कम पर जीवन यापन करता है, उसे अत्यधिक गरीबी में रहने वाला माना जाता है. साल के अंत तक इन मानकों को लागू भी किया जा सकता है.

अभी कितनी कमाई पर माने जाते हैं गरीब?

अगर मौजूदा स्थितियों की बात करें तो अभी हर रोज 1.90 डॉलर यानी 147 रुपये रोजाना कमाने वाला अत्यंत गरीब माना जाता है. ये मानक साल 2011 की कीमतों और महंगाई को ध्यान में रखते हुए जारी किया गया था. डब्ल्यूएचओ की वेबसाइट पर दी गई जानकारी के अनुसार, वैश्विक गरीबी रेखा का मानक 2011 की अंतरराष्ट्रीय कीमतों पर प्रति दिन 1.90 डॉलर से कम पर रहने वाली आबादी के प्रतिशत के रूप में परिभाषित किया गया है. बता दें कि 2011 की अंतरराष्ट्रीय कीमतों पर ‘अंतर्राष्ट्रीय गरीबी रेखा’ 1.90 डॉलर प्रति दिन तय की गई है. बता दें कि विश्व बैंक समय-समय पर महंगाई, जीवन-यापन के खर्च आदि को ध्यान में रखते हुए इन मानकों में बदलाव करता है.

क्यों पुरानी इनकम में किया गया बदलाव?

रिपोर्ट के अनुसार, वैश्विक गरीबी रेखा को समय-समय पर दुनिया भर में कीमतों में बदलाव को दर्शाने के लिए बदल दिया जाता है. गरीबी रेखा से नीचे वाले लोगों में होने वाली बढ़ोतरी दुनिया में बुनियादी भोजन, कपड़े और आश्रय की जरूरतों में वृद्धि को दर्शाती है. रिपोर्ट के अनुसार, वैसे 2017 की कीमतों में 2.15 डॉलर का वास्तविक मूल्य वही है जो 2011 की कीमतों में 1.90 डॉलर था.

भारत में गरीबी की स्थिति?

देश में 20 करोड़ से भी ज्यादा लोग ऐसे हैं, जो गरीबी रेखा से नीचे हैं और काफी मुश्किल से अपना जीवन यापन कर रहे हैं. भारत सरकार की ओर से दी गई जानकारी के अनुसार, साल 2011-2012 में कुल 21.92 फीसदी लोग गरीबी की रेखा से नीचे अपना जीवन यापन कर रहे थे. अगर इनकी संख्या की बात करें तो ये संख्या है 2697.83 लाख यानी 26 करोड़ 97 लाख गरीब हैं, जिनका डेटा सरकार के पास है. वहीं, इनमें ग्रामीण क्षेत्रों में ज्यादा गरीब होती हैं, क्योंकि ग्रामीण इलाकों में गरीबी का प्रतिशत 25.70 है जबकि शहरी क्षेत्र में यह प्रतिशत 13.70 फीसदी है. ये डेटा वैश्विक मानकों के आधार पर अलग भी हो सकता है.

अगर राज्य के हिसाब से देखें तो छोटे राज्यों में हाल ज्यादा बुरा है. जैसे दादर और नागर हवेली में 39.31 फीसदी, झारखंड में 39.96 फीसदी, ओडिशा में 32. 59 फीसदी गरीब लोग रहते हैं. वहीं, उत्तरप्रदेश में करीब 29 और बिहार में करीब 33 फीसदी लोग गरीबी रेखा से नीचे हैं. सरकार के डेटा के अनुसार, कुल गरीबों में भी 21 करोड़ के करीब गरीब सिर्फ ग्रामीण इलाकों में रहते हैं, जबकि शहरी क्षेत्रों में 5 करोड़ गरीब लोग रहते हैं. माना जा रहा है कि वैश्विस स्तर पर कमाई के मानक बदलने से गरीबों की संख्या में भी बढ़ोतरी हो सकती है.

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