मुजफ्फरपुर जंक्शन से लीची की रिकार्ड लोडिंग से रेलवे मालामाल, ढुलाई से रेलवे को हुई 61 लाख की आय

मुजफ्फरपुर, जागरण संवाददाता। लीची से इस बार किसानों एवं व्यापारियों को फायदा हुआ, वहीं रेलवे ने भी जमकर मुनाफा कमाया। सोनपुर रेलमंडल के वरिष्ठ मंडल वाणिज्य प्रबंधक प्रसन्ना कात्यायन ने बताया कि मुजफ्फरपुर जंक्शन से पहली बार लीची की रिकार्ड लोडिंग की गई।

रेल प्रशासन ने लीची भेजने के लिए 20 मई से 13 जून तक जंक्शन को उच्च क्षमता यान उपलब्ध कराया। इससे बिना बिचौलिए के किसानों एवं व्यापारियों को सीधे फायदा पहुंचा। किसानों ने कम खर्चे पर पवन एक्सप्रेस से लोकमान्य तिलक टर्मिनल एवं अन्य स्टेशनों के लिए लीची भेजी। उच्च पार्सल यान से 5625 क्विंटल एवं एसएलआर से 840 क्विंटल लीची लोकमान्य तिलक टर्मिनल गई। इससे रेलवे को 46 लाख 31 हजार 718 रुपये की आय हुई।

आठ मई से 13 जून तक लूज पार्सल वैन द्वारा 2988 क्विंटल लीची राजकोट, जयपुर, सूरत, अमृतसर, दिल्ली, भुसावल समेत कई स्टेशनों को भेजी गई। इससे 15 लाख 38 हजार 318 रुपये राजस्व प्राप्त हुए। जंक्शन से अब तक 9453 क्विंटल की रिकार्ड ढुलाई हुई, जिससे रेलवे को 61 लाख 70 हजार 36 रुपये राजस्व की प्राप्ति हुई। पिछले वर्ष मुजफ्फरपुर जंक्शन से कुल 5769 क्विंटल लीची की ढुलाई हुई थी, जिससे रेलवे को 30 लाख 22 हजार 121 रुपये राजस्व की प्राप्त हुई थी।

लीची के बाद अब लौंगन का ले सकेंगे स्वाद

मुजफ्फरपुर : राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र में लौंगन में फल आ गए हैं। जून के अंतिम सप्ताह से यह खाने के लिए उपलब्ध होगा। अभी सीमित मात्रा में उत्पादन हो रहा है, इसलिए खुले बाजार तक इसकी पहुंच नहीं होगी। इस बार भी यह राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र परिसर में ही बिक्री के लिए उपलब्ध होगी। ग्राहक वहीं से इसकी खरीदारी कर सकेंगे।

थाईलैंड और वियतनाम का मशहूर फल

राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र के निदेशक डा. शेषधर पांडेय ने बताया कि यह थाईलैंड और वियतनाम का मशहूर फल है। लौंगन लीची जैसा ही होता है। एक तरह से कहें तो यह लीची कुल (खानदान) का ही फल है, जो खाने में मीठा है। लीची के पत्तों की तरह इसके भी पत्ते हैं। पेड़ भी वैसा ही है।

अनुसंधान के लिए लाया गया

लौंगन को शोध के लिए राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र में लाया गया है। केंद्र में इसके दो सौ पौधे लगे हुए हैं। इनमें फल भी लगे हैं। किसानों को इसका पौधा लगाने के लिए प्रोत्साहित भी किया जा रहा है। अभी जो फल लगे हैं वह जून के अंतिम सप्ताह से लेकर 15 जुलाई तक उपलब्ध होगा। लीची उत्पादक अपने बगीचे में लगाने के लिए हर साल 100 से 150 पौधे ले जाते हैं। डा. पांडेय ने बताया कि इस साल इसके प्रसंस्करण की तैयारी है। किसानों को इसके लिए प्रेरित किया जाएगा।

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