6 महीने के भीतर बिहार में दो बड़े उपद्रव और दोनों का पैटर्न सेम, 3 दिनों के उग्र आंदोलन के बाद चौथे दिन बिहार बंद और फिर आंदोलन खत्म

महज 6 महीने के अंतराल पर बिहार में दो बार बड़े उपद्रव हुए। पहला उपद्रव इस साल जनवरी महीने के अंतिम सप्ताह में RRB-NTPC के रिजल्ट व वेकैंसी को लेकर हुआ था। शुरुआत में तीन दिन लगातार रेलवे ट्रैक पर विरोध-प्रदर्शन का दौर चला। ट्रेनों के परिचालन को रोका गया। तोड़फोड़ की गई। ट्रेन की कोचों में आग लगा दिए गए। उस वक्त भी बड़े स्तर पर भारतीय रेलवे को बड़ा नुकसान उठाना पड़ा था। तीन दिनों के आंदोलन के बाद चौथे दिन बिहार बंद बुलाया गया। जो हुआ भी।

इसके बाद पांचवे दिन से युवाओं को उग्र आंदोलन पूरी तरह से खत्म हो गया। उस वक्त युवाओं का आंदोलन 24 जनवरी को राजेंद्र नगर टर्मिनल से आंदोलन की शुरुआत हुई थी। फिर 25 जनवरी को बक्सर, मुजफ्फरपुर, नालंदा, नवादा, सीतामढ़ी और आरा, ट्रेनें रोकी गई और उनके उपर पथराव किया गया। 26 जनवरी को भी कई जिलों में बवाल हुआ, गया में ट्रेन की 6 बोगियों को आग लगाया गया था, जहानाबाद में रेलवे ट्रैक जाम कर दिया गया था। फिर राजनीतिक पार्टियों की इसमें एंट्री हुई और 27 जनवरी के गैप के बाद 28 जनवरी को बिहार बंद का कराया।

अब बात दूसरे उपद्रव की
जब केंद्र सरकार की तरफ से सेना में बहाली के लिए अग्निपथ योजना की घोषणा की गई, उसके बाद से बवाल शुरू हो गया। इस योजना के विरोध में बिहार के अंदर दूसरा उपद्रव हुआ। 16 जून को युवाओं ने आंदोलन की शुरुआत की। आरा-बक्सर समेत कई स्टेशनों पर ट्रेनों को रोका गया। वहां तोड़फोड़ हुई। इसके बाद 17 जून को यह उपद्रव और अधिक बढ़ गया। पटना में दानापुर समेत कई जिलों में रेलवे स्टेशन और ट्रेनों को निशाना बनाया गया। तोड़फोड़ के बाद उनमें आग लगा दी गई। राज्य के अंदर 18 जून को भी उग्र आंदोलन जारी रहा। सुबह 5 बजे से ही ट्रेनों को जहां-तहां रोका गया। फिर इस मामले में भी राजनीतिक दलों की एंट्री हुई। और तीनों के भारी उपद्रव के बाद चौथे दिन 19 जून को बिहार बंद कराया गया। हालांकि, इस बार 20 जून को भारत बंद भी था। जो पूरी तरह से बेअसर था। बावजूद इसके जनवरी और जून में हुए उपद्रव के बीच का पैटर्न एक ही है।

क्या कोई गैंग हुआ एक्टिव?
जिन जिलों में उपद्रव हुए, वहां की पुलिस लगातार जांच-पड़ताल कर उपद्रवियों की पहचान कर रही है। उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज रही है। जून में हुए उपद्रव में कुल 161 FIR दर्ज किए गए। जबकि, 922 उपद्रवियों की पहचान कर उन्हें जेल भेजा गया। DGP संजीव कुमार सिंघल कह चुके हैं कि इस मामले में जांच और गिरफ्तारी की कार्रवाई जारी रहेगी। जिलों में पुलिस की तरफ से किए जा रहे कार्रवाई पर मुख्यालय के अधिकारी लगातार अपनी नजर रख रहे हैं। लेकिन, उपद्रव के पैटर्न को देख इनके मन में भी सवाल उठने लगे हैं।

सवाल यह कि क्या कोई ऐसा गैंग एक्टिव हो गया है? जो उपद्रव करता है। रेलवे को निशना बनाता है। तोड़फोड़ के बाद ट्रेनों के कोच में आग लगा देतो है। गैंग के एक्टिव होने को लेकर उठे सवाल के पीछे एक बड़ी वजह भी मानी जा रही है। सूत्रों के अनुसार गया, सासाराम, आरा, बक्सर, समस्तीपुर समेत भारी उपद्रव वाले जगहों के वीडियो फुटेज की जांच पुलिस मुख्यालय ने करवाई थी। जिसमें काफी सारे वैसे चेहरे दिखे जो जनवरी में हुए RRB-NTPC के उपद्रव में शामिल तो थे ही, वही चेहरे जून के उपद्रव में भी दिखे। पुलिस सूत्रों के अनुसार इस बात को और पुष्ट करने के लिए ही इन जगहों के मोबाइल टावर का डम्प डाटा निकाला गया। जिसमें करीब 700 वैसे मोबाइल नंबर मिले, जो दोनों ही उपद्रव के दौरान एक ही जगह पर एक्टिव थे।

अब लगातार सवाल यह उठ रहा है कि जिन लोगों ने RRB-NTPC के लिए उपद्रव किया था, वो लोग अग्निपथ योजना के विरोध में क्यों खड़े थे? सेना की बहाली से इनका क्या लेना-देना? जिनकी उम्र अग्निवीर बनने से अधिक की है, वो उपद्रव क्यों मचा रहे थे? बार-बार रेलवे को निशाना क्यों बनाया जाता है?

इन सवालों का जवाब जानने के लिए छात्र नेता व राष्ट्रीय एकता मंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष दिलीप कुमार से बात की गई। इनके अनुसार दोनों ही आंदोलन नेतृत्व विहिन था। इन्होंने माना कि दोनों उपद्रव का पैटर्न सेम है। हालांकि, इनका दावा है कि उपद्रव में किसी टीचर की कोई भूमिका नहीं है। छात्र हर वक्त एक-दूसरे का साथ देने के लिए तैयार रहते हैं। इसी वजह से RRB-NTPC की तैयारी करने वाले छात्र सेना की तैयारी करने वाले छात्रों के सपोर्ट में हैं। छात्र नेता ने रेलवे को शिकार बनाने के लिए गलत तो माना पर यह भी कहा कि रेलवे केन्द्र सरकार की है। इसीलिए केन्द्र सरकार पर दबाव बनाने के लिए छात्र रेलवे ट्रैक पर जाते हैं और ट्रेनों के परिचालन को रोकते हैं।

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