भारत के टेक हब पर अमेरिकी मंदी का साया, क्या सचमुच खतरे में है देश की IT इंडस्ट्री ?

भारत का टेक उद्योग (Tech Industry) अमेरिकी मंदी की आशंका से इंकार कर रहा है। शायद यह इंफोसिस लिमिटेड के Q1 रिजल्ट की वजह से है। इंफोसिस को आईटी इंडस्ट्री का आधार माना जाता है। FY23 की पहली तिमाही के लिए कंपनी ने 23.6 प्रतिशत का मुनाफा कमाया है। फिलहाल तो आईटी इंडस्ट्री में बेंगलुरु का दबदबा कायम है। ग्लोबल रियल एस्टेट कंसल्टेंट नाइट फ्रैंक के अनुसार, बेंगलुरु में ऑफिस के किराए में 12 फीसद की दर से उछाल देखा जा रहा है। यह शंघाई, सिंगापुर या सिडनी के मुकाबले तीन गुना है। मतलब साफ है कि किरायेदार ऑफिस लेने के लिए अधिक पैसे दे रहे हैं, फिर हमें आईटी इंडस्ट्री के भविष्य के बारे में बारे में उत्साहित होना चाहिए। लेकिन क्या यह आशावाद सही है?

फर्मों के वित्तीय परिणामों को करीब से देखें तो आपको मुनाफे में गिरावट के संकेत दिखाई देंगे। ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट से इस बात का खुलासा हुआ है। इंफोसिस एक साल पहले की जून तिमाही की तुलना में अपनी आय में महज 3 फीसद से कुछ अधिक की वृद्धि करने में सफल रही है, जबकि उसके कुल रेवेन्यू में लगभग 24 फीसद बढ़ोतरी हुई है। ब्याज और कर से पहले की कमाई को ध्यान में रखें तो EBIT मार्जिन में लगभग 3.6 प्रतिशत की गिरावट आई है। महामारी के दौरान कारोबार की हालात को देखते हुए यह गिरावट बहुत निराशाजनक है।

मुश्किल में आईटी इंडस्ट्री

इंफोसिस के पारंपरिक प्रतिद्वंद्वी विप्रो लिमिटेड में, ईबीआईटी मार्जिन सितंबर 2018 तिमाही के बाद से सबसे कम हो गया। कुछ हद तक तो ऐसा इसलिए था क्योंकि इसने 30 जून तक तीन महीनों में 10,000 नए ग्रेजुएटस सहित 15,000 से अधिक नए कर्मचारियों को भर्ती किया। इसी अवधि के दौरान इंफोसिस ने 20,000 कर्मचारियों की भर्ती की।) एक और टेक कंपनी एचसीएल टेक्नोलॉजीज लिमिटेड ने अपनी तिमाही हायरिंग को घटाकर लगभग 2,000 कर दिया। इसके बाद कंपनी का ईबीआईटी मार्जिन घटाकर 17 फीसद आ गया। सबसे बड़ी भारतीय आईटी फर्म टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज लिमिटेड का मार्जिन 23.1 के साथ थोड़ा बेहतर था, लेकिन यह अभी भी 2021 की जून तिमाही की तुलना में 2.4 प्रतिशत अंक कम है। इस साल की बची हुई अवधि में कंपनियों के प्रॉफिट में और भी गिरावट होने की आशंका है। उसकी मुख्य वजह पश्चिम में छाई मंदी है। महामारी खत्म होने के साथ यात्रा और वीजा खर्च बढ़ रहे हैं। भारतीय विक्रेता अधिक भुगतान की मांग करेंगे, जबकि ग्राहक इस साल रुपये में लगभग 7 प्रतिशत की गिरावट का हवाला देंगे। हालांकि विनिमय दर का लाभ रुपये की लागत के बढ़ते दबाव को पूरा करने के लिए अपर्याप्त होगा।

इस संदर्भ में एक महत्पूर्ण बात और भी है और वह है वेतन। वेतन वृद्धि को कम नहीं किया जा सकता है। टीसीएस में 600,000 से अधिक लोग काम करते हैं, लेकिन यहां नौकरी छोड़ने की दर लगभग 20 फीसद पहुंच रही है, जो एक साल पहले की तुलना में दोगुने से अधिक है। कर्मचारियों को रिटेन कर ले जाना इंफोसिस में अधिक चुनौतीपूर्ण प्रतीत होता है। जून तिमाही में यहां कर्मचारियों के नौकरी छोड़ने की दर 28 फीसद से अधिक हो गई। स्टार्टअप जो भारत के स्थानीय ई-कॉमर्स या फिनटेक बाजारों को लक्षित करते हैं, सॉफ्टवेयर निर्यातकों के समान प्रोग्रामर के लिए जूझ रहे हैं। अंततः वे सभी अपने मार्जिन को बचाने के लिए ‘पिरामिडिंग’ का सहारा लेंगे। यानी एक अनुभवी प्रोजेक्ट मैनेजर के तहत बहुत सारे अनुभवहीन कर्मचारियों को रखना और यह उम्मीद करना है कि ग्राहक कंपनी के काम से खुश होगा।

अगर अमेरिका में आई मंदी तो फिर…

भारत के आईटी सर्विस एक्सपोर्टर्स के लिए सबसे अच्छा दांव यह उम्मीद करना है कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था जो उनका सबसे महत्वपूर्ण बाजार है, वह मंदी से बच जाए। यह भी कि जिन ग्राहकों ने कोविड-19 के दौरान अपने डिजिटल बजट को बढ़ाया है, वे ऑर्डर देते रहेंगे। लेकिन क्या वे ऐसा करेंगे? ग्राहक क्लाउड कंप्यूटिंग, एनालिटिक्स, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और यहां तक ​​कि वर्चुअल रियलिटी को लेकर उत्साहित हो सकते हैं, लेकिन मुद्रास्फीति और कमाई के दबाव के कारण उनकी खर्च करने की इच्छा, खर्च करने की क्षमता से बाधित होगी।

अल्फाबेट या मेटा प्लेटफॉर्म्स सी बड़ी उपभोक्ता टेक कंपनियां अपने प्रीमियम वैल्यूएशन में गिरावट देख रही हैं। निवेशक प्रॉफिट मेकिंग के बारे में उतने आशावादी नहीं हैं, जितना कि सॉफ्टवेयर निर्यातक ऑर्डर के बारे में हो चुके हैं। शायद, देर-सबेर अमेरिकी मंदी भारत के आईटी हब को अपनी चपेट में ले लेगी।

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