बाबा दरबार में दर्शन पूजन के लिए सावन के सोमवार पर आस्था की कतार उमड़ रही है। आस्थावानों से काशी सावन माह भर बम बम रहती है। ऐसे में कांवड़ यात्रा को लेकर भी प्रशासन अलग अलग मान्यताओं वाले कांवड़ियों के लिए अलग- अलग दर्शन पूजन की व्यवस्था करता है। इस लिहाज से कांवड़ यात्रा भी अलग अलग होती है और कांवड़ियों के भी अलग अलग प्रकार होते हैं। आप उनको कांवड़ लेकर आने के तौर तरीकों से आसानी से पहचान सकते हैं। प्रमुख तौर पर बोल बम कांवड़िया और डाक बम कांवड़िया ही शिवालयों में जलाभिषेक के लिए पहुंचते हैं।वाराणसी में प्रत्येक वर्ष सावन माह में सोमवार को जलाभिषेक करने के लिए डाक-बम, बोल-बम, ताड़क-बम आदि कांवड़िए दर्शन पूजन के लिए आते हैं। इस दौरान बोल बम का नारा और हर हर महादेव का उद्घोष कांवड़ियों के मुख से लगातार निकलता रहता है। मान्यताओं के अनुरूप ही कांवड़ यात्रा की परंपरा युवाओं ही नहीं बल्कि महिलाओं और युवतियों में भी खूब पसंद किया जाता है। ऐसे ही कांवड़ यात्रा की मनौतियों को पूरा करने के लिए लोगों का हुजूम पूरे सावन भर और विशेषकर सावन के सोमवार पर खूब होती है। काले रंग के कपड़ों की मान्यता : काले रंग का कपड़ा पहन कर कांवड़ यात्रा करने वाले महाकाल के भक्त होते हैं। भगवान शिव के गण के भूत प्रेत और पिशाच की मान्यताओं को लेकर यह काले कपड़े पहनकर कांवड़ यात्रा समूह में करते हैं। शेष अन्य मान्यताएं कांवड़ यात्रा की सामान्य स्वच्छता और जलाभिषेक की ही होती है। सफेद कपड़ों में आते हैं डाक बम : सफेद रंग के परिधान में डाक बम कांवड़ियों की सक्रियता देखी जा सकती है। यह वह कांवड़िए होते हैं तो बिना थके और बिना रुके जल लेने के बाद सीधे बाबा का अभिषेक करने पहुंचते हैं। ऐसे में इनके लिए अलग लेन की व्यवस्था होती है ताकि बिना ठहराव यह सीधे बाबा का जलाभिषेक करने के लिए पहुंच सकें। भगवा कपड़ों में बोल बम की मान्यता : भगवा रंग धर्म आध्यात्म का प्रतीक है। ऐसे में आम कांवड़िया बाबा दरबार में कांवड़ यात्रा के लिए पहुंचने के पूर्व बाबा दरबार में भगवा रंग में ही पहुंचने की कामना करता है। इस लिहाज से भगवा परिधान में अधिकतम कांवड़ यात्री पहुंचते हैं और बाबा का अभिषेक कर पुण्य की कामना करते हैं। मान्यता के अनुसार सूर्योदय के समय सूर्य का रंग भी लालिमा लिए हुए होता है और हिंदू मान्यता के अनुसार सूर्य जीवन का आधार भी है। इसलिए उगते सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा भी रही है।
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