शहीद खुदीराम बोस को गांव की मिट्टी चढ़ाकर दी श्रद्धांजलि, सजाया गया केंद्रीय जेल, कार्यक्रम में गांव से आए परिजन भी हुए शामिल

एक बार विदाई दी मां…घुरे आसी, हांसी हांसी परिवो फांसी देखवे जोगोत वासी..। शहीद खुदीराम बोस द्वारा अंतिम समय मे जेल की दीवार पर लिखी गयी इस कविता से आज मुजफ्फरपुर सेंट्रल जेल परिसर गूंज उठा। जेल में उनका शहादत दिवस मनाया गया। उनके पश्चिम बंगाल स्थित मिदनापुर गांव से परिजन भी आए थे, जो इस दृश्य के गवाह बने। शहीद खुदीराम बोस के सेल को कृत्रिम लाइट से सजाया गया था। पूरा जेल परिसर भी सजा हुआ था। जिला प्रशासन, पुलिस और जेल अधिकारी मौजूद थे। उनके गांव से आए परिजन ने उनकी तस्वीर पर फूल-मालाएं अर्पित की। दीप और मोमबत्ती जलाया गया। उनके सेल की मिट्टी को चूमकर सिर झुकाकर प्रणाम किया। फिर गांव की मिट्टी और उनके घर के समीप बने काली मां के मंदिर का प्रसाद भी चढ़ाया गया। इसके बाद जिला प्रशासन, पुलिस और जेल अधिकारी व कर्मियों ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। परिजन ने फांसी स्थल की मिट्टी को अपने माथे पर लगाया। SDO पूर्वी ने सभी को शॉल ओढ़ाकर सम्मानित किया।

 

परिजन ने कहा- हमें गर्व है खुदीराम पर

 

शहीद खुदीराम बोस के फांसी स्थल को रजनी गंधा, गुलाब और गेंदा के फूल से सजाया गया। उनके परिजन प्रकाश कुमार हलधर ने कहा कि गांव में खुदीराम का बहुत मान सम्मान है। हमे गर्व महसूस होता है जब कोई हमें उनका परिजन और गांव के लोग के नाम से पुकारता है। हर घर में खुदीराम जैसा वीर सपूत जन्म ले, जो इस भारत माँ की सेवा कर सके। इस मिट्टी के लिए अपना जान न्योछावर कर सके। यही कामना करते हैं।

 

अंग्रेजी हुकूमत की हिला दी थी नींव

 

सिर्फ 18 साल की उम्र में मासूम दिखने वाले लेकिन जिगर से फौलाद खुदीराम ने अंग्रेजी हुकूमत की नींव हिलाकर रख दी थी। मुजफ्फरपुर में अंग्रेजी जज किंग्सफोर्ड पर बम फेंककर अंग्रेजों को दहला दिया था। हालांकि इस विस्फोट में जज किंग्सफोर्ड बच गया था। लेकिन, एक अंग्रेजी वकील की पत्नी और बेटी की मौत हो गयी थी। इस विस्फोट ने अंग्रेजों को हिला दिया था। वहां से वे पैदल रेलवे पटरी होते हुए सम्सतीपुर की तरफ निकले थे। लेकिन, पूसा के वैनी स्टेशन पर उन्हें पकड़ लिया गया था। इसके बाद सुनवाई चली। सिर्फ 8 दिनों की सुनवाई के बाद उन्हें फांसी की सजा सुना दी गयी थी।

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