सकरा में किडनी निकालने की घटना के बाद स्वास्थ्य विभाग की फिर नींद खुली है। रटे-रटाए अंदाज में जांच टीम बनाने की कवायद तेज है। ऐसा नहीं है कि जिला स्तर पर टीम नहीं है।
यह नए लाइसेंस के लिए आवेदन देने वाले अस्पताल के निरीक्षण व कोई शिकायत आने के बाद ही जांच के लिए जाती है। अस्पताल को लाइसेंस मिलने के बाद वह शर्त के अनुसार चल रहा या नहीं, यह नहीं देखा जाता। जिन अस्पतालों को लाइसेंस मिला, उसका माह में एक बार निरीक्षण पीाएचसी प्रभारी स्तर से होना चाहिए। मुख्यालय से भी साल में तीन या चार बार टीम को देखना चाहिए कि अस्पताल ने 10 बेड का लाइसेंस लिया तो अंदर ही अंदर 50 बेड तो नहीं बना लिए। अल्ट्रासाउंड के एक लाइसेंस पर पांच मशीनें तो नहीं चली रही हैं। नियमित निगरानी नहीं होने से पूरे जिले में अवैध नर्सिंग होम की बाढ़ आ गई है।
हर प्रखंड में मुख्य बाजार व चौक-चौराहे पर औसतन 50 नर्सिंग होम चल रहे हैं। जूरन छपरा में 200 से 300 अवैध नर्सिग होम चल रहे हैं। यहां आने वाले मरीज ठगी के शिकार होते हैं। आए दिन मरीज के गलत इलाज करने का आरोप लगता है। पुलिस को हस्तक्षेप करना पड़ता है।
ये होना चाहिए जो नहीं हो रहा
- – निजी नर्सिंग होम के ऊपर जिस चिकित्सक का नाम व डिग्री लिखकर चलाया जा रहा उसकी जांच नहीं होती कि बोर्ड पर लिखी बात सही या नहीं
- – जहां पर चल रहा अस्पताल उसके पास जांच व इलाज के साथ कितने कर्मचारियों के पास डिग्री है इसकी नहीं होती नियमित पड़ताल।
- – अस्पताल के बाहर यह डिस्पले नहीं रहता कि यहां पर क्या होता इलाज, किस बीमारी के आपरेशन की कितनी फीस
- – जिला स्तर पर कोई हेल्पलाइन नंबर नहीं है, जहां पर कोई शिकायत करे
- – जिले के सभी थाने को भी नियमित नजर रखनी चाहिए। अस्पताल के पास लाइसेंस है कि नहीं इसकी जांच होना चाहिए। यह नहीं होता है।