सुप्रीम कोर्ट में बिहार में ओबीसी आरक्षण के साथ स्थानीय और नगर निकाय चुनाव के मामले की सुनवाई दो हफ्ते तक टल गई है. जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जेके माहेश्वरी की पीठ के समक्ष सुनवाई दो हफ्ते के लिए टाल दी गई है. बताया जा रहा है कि मामले में बिहार सरकार ने जवाब दाखिल करने के लिए दो हफ्ते का समय मांगा है. जिसके चलते सुप्रीम कोर्ट अब दो हफ्ते बाद मामले की सुनवाई कर सकती है.
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में दायर जनहित याचिका में कहा गया है कि राज्य सरकार ने आरक्षण के लिए ज़रूरी अध्ययन किये बिना चुनाव कराए हैं. सुप्रीम कोर्ट पहले ही 28 अक्टूबर को अति पिछड़ा वर्ग के राजनीतिक पिछड़ेपन को निर्धारित करने के बनाये डेडिकेटेड कमीशन के काम पर रोक लगा चुका है. ऐसे में उसी कमीशन की रिपोर्ट को आधार बनाकर चुनाव आयोग का नोटिफिकेशन जारी करना अदालत की अवमानना है.
जातिगत जनगणना मामले में बिहार सरकार को राहत
बिहार में जातिगत जनगणना मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार को राहत दी है. कोर्ट ने जातिगत जनगणना की अधिसूचना को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई से इंकार कर दिया है. कोर्ट ने 6 जून को राज्य सरकार द्वारा जारी अधिसूचना रद्द करने की मांग वाली तीनों याचिकाओं पर कहा कि पटना हाईकोर्ट जाइए. दरअसल, बिहार में जातिगत जनगणना के लिए जारी किए गए नोटिफिकेशन के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में कुल तीन याचिकाएं दाखिल की गई थीं. इन याचिकाओं में कहा गया है कि जातिगत जनगणना का नोटिफिकेशन संविधान की मूल भावना के खिलाफ है.
सुप्रीम कोर्ट ने पूछा- पटना हाईकोर्ट क्यों नहीं गए?
इस पर कोर्ट ने कहा कि जातिगत जनगणना के नोटिफिकेशन को रद्द करने की मांग वाली ये याचिकाएं पब्लिसिटी इंट्रेस्ट लिटीगेशन लगती हैं. कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं से पूछा कि आप पहले पटना हाईकोर्ट क्यो नहीं गए? सीधे यहां आने का क्या मकसद है जब हाईकोर्ट भी इसे सुनने में सक्षम है. आप याचिका वापस लेना चाहेंगे या हम इसे खारिज कर दें? याचिकाकर्ताओं ने अर्जी वापस लेने पर हामी भरी तो सुप्रीम कोर्ट ने बिहार जातिगत जनगणना के खिलाफ दाखिल सभी तीन याचिकाओं को हाईकोर्ट जाने की लिबर्टी दे दी.
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