आस्था है, भरोसा है, साथ ही चमत्कार के दावे हैं. कोई ईश्वर का अवतार मानता है, तो किसी की नजरों में दीन दुखियों का दुख दूर करने वाला. किसी के लिए दिव्य दरबार है. तो किसी के लिए पूरा संसार. चमत्कार पर सवाल भी उठे, दावों को खारिज भी किया गया. सैकड़ों लोगों की बाबा में आस्था हिली भी. इसलिए ये समझना जरूरी है कि ये बाबा हैं कौन, इनका संसार कैसा है.
महाराज पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री को समझने के लिए चलना होगा मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में बने बागेश्वर धाम में. दावा किया जाता है कि इस बागेश्वर धाम में आने वालों का हर कष्ट दूर हो जाता है. यहां आने वालों से कोई एंट्री फीस नहीं लिया जाता. लोगों के बताए बिना ही उनके बारे में सारी जानकारी हासिल कर लेने का दावा करने वाले पंडित धीरेंद्र शास्त्री के पास क्या वाकई में कोई करिश्माई शक्ति है, ये रहस्य है.
ये आस्था और अंधविश्वास के बीच की वो महीन डोर है जिसे समझ पाना मुश्किल है. छतरपुर जिला मुख्यालय से करीब 30 किलोमीटर दूर छतरपुर-खजुराहो हाईवे से सटा गढ़ा गांव बागेश्वर धाम पर देश की नजरें गड़ी हैं. यहीं पर दर्जनों कैमरों के बीच महज 26 साल के धीरेंद्र शास्त्री का दरबार सजा रहता है. जहां अर्जी लगाने वालों का मन पढ़ने लेने का दावा करते हैं बागेश्वर धाम के महाराज धीरेंद्र शास्त्री.
हर कोई अपनी समस्या लेकर पहुंचता है दरबार
बाबा बागेश्वर के दरबार में हर उम्र के लोग अपनी परेशानियां लेकर आते हैं. कोई बाबा के धाम में नौकरी की समस्या लेकर आता है तो कोई पुत्ररत्न की प्राप्ति की कामना लेकर पहुंचता है. किसी को भूत बला को दूर करना है तो कोई गृह क्लेश से छुटकारा चाहता है.
सनातन धर्म की रक्षा के लिए खड़े रहने का दावा करने वाले बागेश्वर धाम के महाराज की लोकप्रियता इतनी बढ़ गई है कि अब वह अपने बयानों को लेकर भी आये दिन सुर्खियों में बने रहते हैं. सोशल मीडिया पर भी ये हिट हैं, इनके छोटे-छोटे वीडियो खूब वायरल होते हैं. इसकी एक वजह बुंदेली भाषा में अपनी कथाएं सुनाना भी है, जो उन्हें बाकी बाबाओं से अलग बनाता है.
लंदन की संसद में हुए सम्मानित
दो साल पहले सोशल मीडिया से शुरू हुआ उनकी प्रसिद्धि का सफर 7 समंदर पार तक पहुंच गया. 14 जून 2022 को लंदन की संसद में उन्हें सम्मानित किया गया था. धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री की चर्चा इस कारण है कि उनके ‘दिव्य दरबार’ में अर्जी लगाने वालों की भीड़ लगती है.
कुल देवता के मंदिर में वाचते हैं कथा
एमपी के छतरपुर जिला में बसा है गढ़ा गांव. जिसके आखिरी छोर पर मौजूद है बागेश्वर धाम मंदिर. बताया जाता है कि ये शिव मंदिर करीब 300 से 400 साल पुराना है, जो धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री के परिवार के कुल देवता भी हैं. इसी प्राचीन मंदिर में कुछ साल पहले हनुमान जी की मूर्ति स्थापित की गई है.
धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री इसे बालाजी पुकारते हैं. उनसे मुलाकात के लिए यहीं पर नारियल बांधकर अर्जी लगाई जाती है. कथावाचक धीरेंद्र शास्त्री अपने शुरुआती दिनों में सत्यनारायण कथा कहते थे. धीरे-धीरे वो दरबार लगाने लगे और फिर तो इतनी तेजी से नाम हुआ कि दो साल के अंदर उनका जिक्र लंदन की संसद तक में हो गया. अगर यूँ कहें की बागेश्वर धाम के ये महाराज सबसे तेजी से उभरने वाले कथावाचक हैं तो गलत नहीं होगा.
कौन हैं बागेश्वर धाम महाराज?
पूरा नाम है धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री, पर ये बागेश्वर धाम महाराज के नाम से जाने जाते हैं. इनमें आस्था रखने वाले उन्हें बालाजी महाराज, बागेश्वर महाराज, धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री के नाम से भी बुलाते हैं. इनका जन्म 4 जुलाई 1996 को मध्य प्रदेश में छतरपुर के गड़ा में हुआ था. यानि अगर उम्र देखें तो ये महज 26 साल के हैं.
जो लोग धीरेंद्र शास्त्री को बचपन से जानते आए हैं, उनका कहना है कि बचपन से ही ये चंचल और हठीले थे, इनकी शिक्षा गांव के ही सरकारी स्कूल में हुई, हाईस्कूल और हायर सेकेंडरी की पढ़ाई धीरेंद्र ने पास के ही गंज गांव से की.
किसी बड़े परिवार में जन्म नहीं हुआ था, माता सरोज शास्त्री दूध बेचने का काम करतीं थीं और पिता रामकृपाल गर्ग गांव में सत्यनारायण की कथा सुनाते थे और उससे जो भी कमाई होती थी उसी से परिवार का गुजारा चलाते थे. धीरेंद्र शास्त्री को कथा सुनाने का माहौल बचपन से ही मिला.
शायद उसी का नतीजा है धीरेंद्र जब इस क्षेत्र में आए तो तेजी से तरक्की करते गए. गांव के लोग बताते हैं कि एक वक्त था जब धीरेंद्र के परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत खराब रहती थी, खाने तक के लाले रहते थे. जैसे तैसे गृहस्थी चलाती थी. रहने के लिए एक छोटा-सा कच्चा मकान था. जिसमें बरसात काटना मुश्किल होता था.
बचपन में पिता के साथ वाचते थे कथा
इस बीच पिता के साथ धीरेंद्र शास्त्री ने भी कथा वाचन शुरू कर दिया. धीरे-धीरे उन्होंने पिता से मिले संस्कारों को आगे बढ़ाना शुरू किया, अकेले ही आसपास के गांवों में कथा बांचने लगे. पहली बार साल 2009 में इन्होंने भागवत कथा पास के ही गांव में सुनाई थी.
जिन लोगों ने उन्हें शुरुआती दिनों में देखा है वो कहते है कि धीरेंद्र शास्त्री के अंदर कथा कहने की एक अलग शैली थी, जो लोगों को काफी पसंद आती थी. इसलिए उन्हें आसपास के गांवों से भी बुलावा आने लगा और धीरे धीरे ये कथा बांचने में मशहूर होने लगे
जब थोड़ा नाम हुआ तो धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने सोचा कि लोगों के घर जाने से बेहतर होगा कि ऐसी जगह बनायी जहां लोग आ कर उन्हें सुनें. इसके लिए सबसे पहले उन्होंने अपने गांव गढ़ा में बने भगवान शिव के प्राचीन मंदिर को अपना स्थान बनाया. जिसे आज बागेश्वर मंदिर के नाम से जाना जाता है.
साल 2016 में गांव वालों के सहयोग से विशाल यज्ञ का आयोजन किया गया. उसमें श्री बाला जी महाराज की मूर्ति की भी स्थापना की गई. तब से ये स्थान बागेश्वर धाम के नाम से जाना जाने लगा और फिर यहां लोगों को आना जाना शुरु हो गया.
अपने दादा को मानते हैं गुरु
बताया जाता है कि श्री बाला जी महाराज के मंदिर के पीछे धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री के दादा सेतु लाल गर्ग सन्यासी बाबा की समाधि भी है. कहते हैं कि उनके दादाजी सिद्ध पुरुष थे. वे हर मंगलवार और शनिवार को इस मंदिर में दिव्य दरबार लगाते थे और लोगों की मन की बात जान लेते थे.
उस समय भी लोग इसी तरह से अर्जी लगाते थे. खुद धीरेंद्र शास्त्री भी 9 वर्ष की उम्र में दादाजी के साथ इस मंदिर में जाया करते थे. उनसे ही रामकथा सीखी, इसलिए वो अपने दादाजी को अपना गुरु मानते हैं. अपने दादाजी की तरह बागेश्वर धाम महाराज भी हर मंगलवार और शनिवार को दिव्य दरबार लगाने लगे. इस दिव्य दरबार में लोग अर्जी लगाने लगे. लोगों की मन की बात को 3 सवाल और उनका हल एक पन्ने पर लिखने लगे.
बड़ी तादाद में जुटते हैं भक्त
धीरेंद्र शास्त्री के भागवत कथा आयोजन में आस-पास के लोग बड़ी तादाद में जुटे. यहीं से शुरू हुआ धीरू पंडित के धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री बनने का सफर. उनके इस दिव्य दरबार का प्रसारण सोशल मीडिया के हर प्लेटफार्म पर होने लगा. इससे उनके दरबार में आने वालों की भीड़ कई गुना हो गई.
धीरे धीरे धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री का बागेश्वर धाम इतना मशहूर हो गया कि, दुनिया से लोग अपनी पीड़ा लेकर पहुंचने लगे. बागेश्वर बाबा हमेशा एक छोटी गदा लेकर चलते हैं. उनका कहना है कि इससे उन्हें हनुमान जी की शक्तियां मिलती रहती हैं. वो हनुमान जी की आराधना करने के लिए लोगों को प्रेरित करते हैं.
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