नेपाल के जनकपुरधाम से अयोध्या के लिए निकली देवशिलाएं सोमवार रात करीब 11 बजे मुजफ्फरपुर पहुंची। इस दौरान पूरा इलाका जय श्री राम के नारों से गूंज उठा। इन्ही शिलाओं से अयोध्या में रामलला और माता जानकी की मूर्ति बनाई जाएगी। जिस रास्ते से इन शिलाओं को ले जाया गया वहां शाम से ही श्रद्धालु की भीड़ लगी रही। जैसे ही शिलाएं वहां पहुंची लोग शालिग्राम पत्थरों पुष्प चढ़ाने लगे। जय श्री राम के नारे लगाने लगे।
इन शिलाखंडो की विधिवत पूजन अर्चन कर बड़े ट्रक(कंटेनर) के जरिए मां सीता की जन्मभूमि जनकपुर से होते हुए भारत लाया गया है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक शालिग्राम पत्थर को लाने का सफर 26 जनवरी से ही शुरू हुआ। नेपाल से बिहार होते हुए शालिग्राम पत्थरों की खेप आज सुबह उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में पहुचेंगी।
दो फरवरी को अयोध्या पहुंचेगी शिलाएं
वहीं अभी दो तारीख तक अयोध्या में पहुंचेगी। इसके पहले आज सुबह उत्तर प्रदेश और बिहार सीमा स्थित सलेमगढ़ टोल से एनएच 28 के रास्ते कुशीनगर में प्रवेश करेगी। जिसको लेकर जिला प्रशासन ने सारी तैयारियां पहले ही पूरी कर ली हैं। बिहार की सीमा से उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में शालिग्राम पत्थरों को प्रवेश करते ही विधिवत पूजन अर्चन के बाद नेशनल हाईवे 28 के रास्ते गोरखपुर, संतकबीरनगर, बस्ती होते हुए अयोध्या को जाएगी।
शाम 4 बजे गोरखपुर पहुंचेगी शिलाएं
वहां से कुशीनगर होते हुए जगदीशपुर से होते हुए गोरखपुर में शाम 4 बजे तक पहुंचेंगे। इन पत्थरों के गोरखपुर पहुंचने से पहले यहां कार्यकर्ता और आम जनमानस में बहुत उत्साह का माहौल है। यात्रा का गोरखपुर में प्रवेश होने पर कुसमी में शानदार ढंग से स्वागत किया जाएगा।
श्रद्धालुओं को रास्ते में कराए जा रहे हैं दर्शन
रास्ते में जगह-जगह इन ट्रकों को रोककर श्रद्धालुओं को शिलाओं के दर्शन भी कराए जा रहे हैं। नेपाल में जिन-जिन रास्तों से ये पत्थर गुजर रहे हैं श्रद्धालुओं की भारी भीड़ वहां जमा हो रही है। दरअसल सनातन धर्म में शालिग्राम पत्थर का विशेष महत्व है। शालिग्राम पत्थर भगवान विष्णु के स्वरूप मानें जाते हैं और कई हिन्दू घरों में इनकी विशेष पूजा की जाती है।
जानिए शालिग्राम के बारे में
वैज्ञानिक तौर पर शालिग्राम एक प्रकार का जीवाश्म पत्थर है। धार्मिक आधार पर इसका प्रयोग परमेश्वर के प्रतिनिधि के रूप में भगवान का आह्वान करने के लिए किया जाता है। शालिग्राम आमतौर पर पवित्र नदी की तली या किनारों से एकत्र किया जाता है। वैष्णव (हिंदू) पवित्र नदी गंडकी में पाया जानेवाला एक गोलाकार, आमतौर पर काले रंग के एमोनोइड जीवाश्म को विष्णु के प्रतिनिधि के रूप में पूजते हैं। शालिग्राम भगवान विष्णु का प्रसिद्ध नाम है।
नेपाल सरकार ने दिसंबर में दी थी मंजूरी
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक पूर्व नेपाली उप प्रधानमंत्री ने इन पवित्र शिलाओं को अयोध्या भेजे जाने के बारे में आगे बताया है कि ‘मैं जानकी मंदिर के महंत और मेरे सहयोगी राम तपेश्वर दास के साथ अयोध्या गया था। हमारी ट्रस्ट के अधिकारियों और अयोध्या के अन्य संतों के साथ एक बैठक हुई थी। यह निर्णय लिया गया कि नेपाल की काली गंडकी नदी में पत्थर उपलब्ध होने पर उसी से रामलला की मूर्ति बनाना अच्छा रहेगा।’ नेपाल सरकार ने पिछले महीने ही इन शिलाओ को अयोध्या भेजने की मंजूरी दी थी। अब इन्हें अयोध्या ले जाया जा रहा हैं।
दावा- 6 करोड़ साल पुरानी हैं दोनों शिलाएं
राम मंदिर ट्रस्ट के ट्रस्टी कामेश्वर चौपाल ने कहा, “हमें अभी शिलाओं को अयोध्या लाने के लिए कहा गया है। शिलाओं के अयोध्या पहुंचने के बाद ट्रस्ट अपना काम करेगा। ये शिलाएं अयोध्या में 2 फरवरी को पहुंच सकती हैं। शालिग्रामी नदी से निकाली गईं ये दोनों शिलाएं करीब 6 करोड़ साल पुरानी बताई जा रही हैं।”
नेपाल की शालिग्रामी नदी, भारत में प्रवेश करते ही नारायणी बन जाती है। सरकारी कागजों में इसका नाम बूढ़ी गंडकी नदी है। शालिग्रामी नदी के काले पत्थर भगवान शालिग्राम के रूप में पूजे जाते हैं। बताया जाता है कि शालिग्राम पत्थर, सिर्फ शालिग्रामी नदी में मिलता है। यह नदी दामोदर कुंड से निकलकर बिहार के सोनपुर में गंगा नदी में मिल जाती है।
शिला निकालने से पहले नदी में क्षमा याचना की गई
कामेश्वर चौपाल ने बताया कि नदी के किनारे से इन विशाल शिलाखंड को निकालने से पहले धार्मिक अनुष्ठान किए गए। नदी से क्षमा याचना की गई। विशेष पूजा की गई। अब अयोध्या लाया जा रहा है। शिला का 26 जनवरी को गलेश्वर महादेव मंदिर में रूद्राभिषेक भी किया गया है।
नेपाल के पूर्व उप प्रधानमंत्री, जनकपुर के महंत भी आ रहे
शिला यात्रा के साथ करीब 100 लोग चल रहे हैं। विश्राम स्थलों पर उनके ठहरने की व्यवस्था की गई है। विहिप के केंद्रीय उपाध्यक्ष जीवेश्वर मिश्र, राजेंद्र सिंह पंकज, नेपाल के पूर्व उपप्रधानमंत्री कमलेंद्र निधि, जनकपुर के महंत भी इस यात्रा में हैं। ये अयोध्या तक आएंगे। यात्रा के साथ राम मंदिर ट्रस्ट के सदस्य कामेश्वर चौपाल भी हैं।
बताया जा रहा है कि दो महीने पहले कारसेवक पुरम में रुद्राभिषेक करने आए नेपाल के सीतामढ़ी के महंत आए थे। उन्होंने ही ट्रस्ट को शालीग्राम शिलाओं के बारे में जानकारी दी। इसके बाद से इन शिलाओं को नदी से निकालने और अयोध्या लाने का कार्यक्रम तय हुआ। इसमें नेपाल सरकार भी शामिल हुई। सरकार की अनुमति के बाद ही नदी से शिलाएं निकाली गई हैं।
INPUT: bhaskar.com
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