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बिहार के मुजफ्फरपुर की रहने वाली राजकुमारी देवी ने अपने बुलंद हौसले के दम पर न सिर्फ सामाजिक बंधनों का विरोध किया, बल्कि उन्होंने अपनी मेहनत से बड़ी संख्या में महिलाओं की तकदीर को भी बदलने का काम किया. मुजफ्फरपुर के सरैया ब्लॉक से अपने सफर की शुरुआत करने वाली किसान चाची के नाम से मशहूर राजकुमारी देवी को उनके कामों के लिए सरकार ने पद्मश्री से सम्मानित किया.

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इस सफर को तय करने के लिए ‘किसान चाची’ को काफी सामाजिक और पारिवारिक बाधाओं का सामना करना पड़ा, जहां एक वक्त पराए तो दूर अपनों ने भी उन्हें अकेला छोड़ दिया था. लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी. उन्होंने सामाजिक बंधन की खिलाफत करते हुए अपने जमीन पर खेती करने का निश्चय किया और समाज व परिवार के सारे लोगों के विरोध के बाद भी वो निरंतर आगे बढ़ती रहीं.

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वर्ष 1990 में परंपरागत तरीके से खेती करते हुए वैज्ञनिक तरीके को अपनाकर अपनी खेती-बाड़ी को उन्नत किया. इसके बाद उन्होंने अचार बनाने की शुरुआत की. साल 2000 से उन्होंने घर से ही अचार बनाना शुरू किया जो आज किसान चाची की अचार के नाम से पूरे देश में प्रसिद्ध हैं.

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उन्होंने खुद को खड़ा करने के बाद अन्य महिलाओं की तरफ मदद का हाथ बढ़ाया और उन्हें अपने पैरों पर खड़ा होने के लायक बनने के लिए तैयार किया. शुरुआती दौर में उन्होंने आस-पास की महिलाओं के साथ जुड़कर खेती उपज से आम, बेल, निम्बू और आंवला आदि के आचार को बाजार में बेचना शुरू किया. इसके बाद धीरे-धीरे समहू में महिलाओं की संख्या बढ़ी और उनका क्षेत्र बढ़ता चला गया.

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इस क्षेत्र में अपने पहल और योगदान के लिए उन्हें कई बार सामाजिक संगठनों, राज्य और केंद्र सरकार से भी समान्नित किया गया. वर्ष 2019 में उन्हें पद्मश्री सम्मान भी मिला. पद्मश्री राजकुमारी देवी (किसान चाची) ने बताया, ‘वर्ष 1990 में खेती करना शुरू किए फिर वर्ष 2000 से ब्लॉक में ट्रेनिंग हुआ तो हमने देखा कि कम पैसे में तो अचार बनाना ही बेहतर होगा इसलिए हम अचार बनाने के लिए ट्रेनिंग लिए. इसके बाद ‘ज्योति जीविका’ स्वयं सहायता समूह बनाकर 160 महिलाओं को जोड़ा और घर पर ही महिलाओं को काम मिलने लगा.’

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वो बताती हैं कि अब वो 20 से ज्यादा किस्मों की आचार बनाती हैं, जिसकी सप्लाई दिल्ली के प्रगति मैदान, पटना खादी मॉल, विस्कॉमान सहकारिता विभाग तक होती है. वहीं इनके आचारों को लोकल बाजार और कई प्रदर्शनियों में भी देखा गया है. किसान चाची ने कहा, ‘महिलाओं को यही कहूंगी कि कोई काम छोटा नहीं होता है और उसमें बेहतर करने से एक दिन वही काम बड़ा हो जाता है.’
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वहीं उनके समूह में काम करने वाली ग्रामीण महिलाओं ने बताया कि पहले घर में रहते थे आज इनसे जुड़कर पैसा कमा रहे हैं. पहले घर पर थे, घर से बाहर नहीं निकलते थे. बाहर निकले तो यहां काम मिला जिसके बाद मोरब्बा अचार बनाने लगे, जिससे आमदनी होने लगी.
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वहीं, एक दूसरी महिला ने बताया कि घर में रहकर काम करते हुए अच्छी आमदनी होती है. कोई जरूरी नहीं कि बाहर गए तो काम मिल ही जाए और यहां तो निश्चित रूप से काम मिलता है.
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INPUT: aajtak.in
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