Jail से रिहा हुए ‘छोटे सरकार’, AK-47 और बुलेट प्रूफ जैकेट मामले में High Court ने किया बरी

बाहुबली और मोकामा के पूर्व विधायक अनंत सिंह आज सुबह 5 बजे बेऊर जेल से बाहर आ गए। जेल से निकलने के बाद पूर्व विधायक ने कहा कि बाहर आकर बढ़िया लग रहा है। वो यहां से सीधे अपने पैतृक गांव लदमा के लिए रवाना हो गए।

अनंत सिंह के बेटे अंकित कुमार ने कहा कि हमें कोर्ट पर भरोसा था। हमारे परिवार को यकीन था कि पापा जेल से बाहर आएंगे। भगवान के घर में देर है अंधेर नहीं।

बुधवार को पटना हाईकोर्ट ने AK-47 और आवास से बुलेट प्रूफ जैकेट मिलने के केस में उन्हें बरी कर दिया है। पूर्व विधायक के खिलाफ अब एक भी केस पेंडिंग नहीं है। इसके बाद ही अनंत सिंह के जेल से बाहर आने का रास्ता साफ हो गया था।

15 दिन की मिली थी पैरोल

इससे पहले पूर्व विधायक अनंत सिंह को 5 मई को लोकसभा चुनाव के दौरान 15 दिनों की पैरोल मिली थी। 5 साल में पहली बार उन्हें पैरोल दी गई थी। पैरोल उन्हें पुश्तैनी घर, जमीन व जायदाद के बंटवारे के लिए दी गई थी।

19 मई को पैरोल खत्म होने पर जेल जाने से पहले अनंत सिंह ने फेसबुक पर एक पोस्ट कर लिखा था कि, सौभाग्य न सब दिन सोता है, देखें, आगे क्या होता है। आप समस्त जनता मालिक, समर्थकों से वादा है बहुत जल्द लौटेंगे।

 

 

ललन सिंह के लिए किया था प्रचार

लोकसभा चुनाव(2024) के दौरान अनंत सिंह पैरोल पर बाहर आए थे। इस दौरान उन्होंने अपने इलाके में जदयू उम्मीदवार ललन सिंह के चुनाव प्रचार भी किया था। अनंत सिंह ने तब कहा था कि ‘वह जल्द ही हमेशा के लिए बाहर आ जाएंगे’।

पैरोल पर बाहर आने के बाद वो लगातार कहते रहे थे कि उन्हें आईपीएस अधिकारी लिपि सिंह ने जानबूझकर फंसा दिया था। हालांकि, तब अनंत सिंह महागठबंधन के साथ थे। अब राजनीतिक परिस्थितियां बदल चुकी हैं। अनंत सिंह की पत्नी नीलम देवी जो राजद की विधायक थी, अब पाला बदलकर जदयू में आ गई हैं।

साधु बनने गए थे, भाई की हत्या के बाद क्राइम में एंट्री की

अपनी जवानी के दिनों में अनंत सिंह साधु बनने की चाहत रखते थे। इसके लिए वे अपना घर-परिवार छोड़ हरिद्वार भी भाग गए थे। शांति की तलाश में वे यहां पहुंचे जरूर थे, लेकिन साधुओं के साथ ही मुठभेड़ हो गई।

खुद से ज्यादा साधुओं की आपसी लड़ाई देखकर उनका मन वैराग्य की दुनिया से उचट ही रहा था, तभी उनके सबसे बड़े भाई बिरंची सिंह की हत्या की खबर मिली। ये सुनते ही सब कुछ छोड़कर वे वापस अपने गांव लौट गए। अब वैरागी बनने गए अनंत सिंह के सिर पर अपने भाई की हत्या का बदला लेने का भूत सवार था। वह दिन-रात भाई के हत्यारे की तालाश में जुट गए।

एक दिन उन्हें जानकारी मिली कि हत्यारा गंगा नदी के उस पार बैठा है। अनंत सिंह ने तैर कर नदी पा की और ईंट-पत्थरों से कूच कर उसे मार डाला। यहां से शुरू हुई अनंत सिंह के क्रिमिनल बनने की कहानी। इस घटना के बाद अनंत सिंह क्राइम की दुनिया में डूबते चले गए। एक के बाद एक घटनाओं को अंजाम देते गए।

 

पड़ोसी विवेका पहलवान ही बना जानी दुश्मन, सालों तक चला खूनी संघर्ष

अनंत सिंह का कद क्राइम की दुनिया में बढ़ता जा रहा था। उनका आगे बढ़ना पड़ोसी विवेका पहलवान को रास नहीं आया। दोनों एक-दूसरे के दुश्मन बन गए। दोनों के घर की दीवार एक जरूर थी, लेकिन दोनों एक-दूसरे की जान लेने के आतुर थे। दोनों के बीच सालों तक खूनी संघर्ष चला।

..जब विवेका पहलवान के हमले में अनंत सिंह के पिता की मौत हो गई

अनंत सिंह के एक करीबी कहते हैं कि ’90 के दशक की बात है। अनंत सिंह रोज की तरह सुबह-सुबह अपने घर के अहाते में बैठे थे। तभी अचानक इलाका गोलियों की तड़तड़ाहट से गूंज उठा। यह हमला अनंत सिंह पर था। गोलियां उनके घर के पीछे से चल रहीं थीं।

अनंत सिंह जब तक संभल पाते, तब तक उन्हें दो गोली लग चुकी थी। हालांकि, अनंत सिंह बच गए, लेकिन बेटे को गोली लगने की खबर सुनकर उनके पिता की हार्ट अटैक से मौत हो गई।’

15 साल में हत्या, रंगदारी, अपहरण के 39 केस दर्ज हुए। अनंत सिंह ने 2005 के अपने चुनावी हलफनामे में मात्र एक केस का जिक्र किया था।

हत्या, अपहरण, रेप और रंगदारी जैसे 39 मामले बिहार के विभिन्न थानों में अनंत सिंह के खिलाफ पुलिस के फाइलों में दर्ज है। 2020 में दायर हलफनामे के मुताबिक उन पर हत्या की कोशिश के 11 और जान से मारने की धमकी के 9 केस दर्ज हैं।

नीतीश कुमार को चांदी से तौल कर राजनीति में की थी एंट्री

90 के दौर में जब बिहार जातीय संघर्ष में जल रहा था। तब अनंत सिंह की पहचान भूमिहार के रक्षक की थी। 2004 आते-आते अनंत सिंह इलाके के बाहुबली बन चुके थे। इधर, बिहार की सियासत में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का उदय हो रहा था।

2004 के लोकसभा चुनाव में नीतीश कुमार और अनंत सिंह की मुलाकात हुई। नीतीश कुमार बाढ़ से चुनाव लड़ रहे थे। उनके खिलाफ बाहुबली सूरजभान सिंह मैदान में थे। चुनाव में अनंत सिंह ने नीतीश कुमार की खूब मदद की। एक चुनावी कार्यक्रम के दौरान बाढ़ शहर में अनंत सिंह ने नीतीश कुमार को लड्डू और चांदी के सिक्कों से तौल दिया।

औपचारिक तौर पर अनंत सिंह की ये राजनीति में एंट्री थी। नीतीश कुमार चुनाव जीत गए। केंद्र की अटल सरकार में मंत्री बनाए गए। अनंत और नीतीश की सियासी दोस्ती आगे बढ़ने लगी।

2004 का इनाम 2005 में मिला, मोकामा से टिकट मिला और विधानसभा पहुंच गए

2004 में नीतीश कुमार की मदद का इनाम अनंत सिंह को 2005 के विधानसभा चुनाव में मिला। 2005 चुनाव में अनंत सिंह को मोकामा से उम्मीदवार बनाया। उन्होंने लोजपा के नलिनी रंजन शर्मा उर्फ ललन सिंह को हराकर राजनीति में एंट्री की।

साल 2010 में भी अनंत सिंह ने जेडीयू के टिकट पर जीत हासिल की। इस बीच नीतीश के साथ अनंत सिंह का कद भी बढ़ते चला गया। स्थिति ये थी कि नीतीश कुमार भी अनंत सिंह के सामने हाथ जोड़ते थे।

2015 में नीतीश के साथ बिगड़े रिश्ते, निर्दलीय लड़े और जीते

2015 के विधानसभा चुनाव से पहले सीएम नीतीश कुमार से उनके संबंध बिगड़ गए। चुनाव से ठीक पहले अनंत सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया। उनके पटना के सरकारी मकान में छापेमारी की गई। कई अवैध और प्रतिबंधित सामग्री बरामद हुई।

कई बड़े मामले में उनका नाम सामने आया। इसके बाद भी उन्होंने 2015 में मोकामा से बतौर निर्दलीय प्रत्याशी अपनी दावेदारी ठोंकी और जीत गए।

साल 2020 चुनाव के दौरान अनंत सिंह जेल में बंद होते हुए भी राजद प्रत्याशी के रूप में खड़े हुए और चुनाव जीते।

AK-47 रखने के आरोप में 10 साल की सजा हुई, तब पत्नी ने संभाली उनकी सियासत

घर में AK-47 रखने के मामले में अनंत सिंह बेऊर जेल में बंद हैं। 21 जून 2022 को उन्हें इस मामले में पटना MP-MLA कोर्ट में 10 साल की सजा सुनाई गई। इसके बाद उनकी विधायकी चली गई। उनके सियासी विरासत को संभालने के लिए उनकी पत्नी नीलम देवी आगे आईं।

उपचुनाव में नीलम देवी उन्हीं ललन सिंह की पत्नी को 16 हजार से अधिक वोटों से हराया, जिसे हराकर 2005 में अनंत सिंह पहली बार विधानसभा पहुंचे थे।

 

लालू का घोड़ा खरीदने के लिए अनंत सिंह ने रची थी साजिश

बात साल 2006-2007 की है। बिहार के सोनपुर में पशु मेला लगा था। लालू यादव ने अपना घोड़ा वहां बिकने के लिए भेजा था। अनंत सिंह को यह पता चली तो उन्होंने लालू यादव का घोड़ा खरीदने का मन बना लिया। अनंत सिंह यह बात जानते थे कि राजद सुप्रीमो को यह बात पता चलेगी तो वो घोड़ा उन्हें नहीं बेचेंगे। लेकिन अनंत ठान चुके थे कि उन्हें लालू यादव का घोड़ा खरीदना ही है।

उन्होंने मेले में एक किसान को लालू यादव का घोड़ा खरीदने के लिए भेज दिया। किसान लालू यादव का घोड़ा खरीदकर ले आया और अनंत के हवाले कर दिया। बाद में अनंत सिंह उसी घोड़े पर बैठकर सोनपुर मेला घूमने निकले थे। जिसके बाद यह चर्चा तेज हुई थी कि अनंत ने लालू यादव को गच्चा देकर उनका घोड़ा खरीद लिया।

घोड़े-हाथी और अजगर पालने का है शौक

अनंत सिंह की चर्चा केवल क्राइम और सियासत के कॉकटेल तक ही सीमित नहीं है। ये घोड़े के शौक के लिए भी जाने जाते हैं। एक बार अनंत सिंह घोड़ा-बग्‍गी को लेकर वि‍धानसभा पहुंच गए थे। बग्गी के इस्तेमाल पर अनंत सिंह से सवाल पूछा गया तो उन्होंने बताया था कि इसमें पेट्रोल की जरूरत नहीं होती है। कहा जाता है कि वह अजगर भी पाल रहे थे।

अनंत सिंह के दो बेटे पिता की सियासी विरासत संभालने के लिए तैयार

अनंत सिंह की विरासत को संभालने के लिए उनके दो बेटे अंकित और अभिषेक तैयार हैं। मोकामा उपचुनाव- 2022 के रिजल्ट के बाद दोनों पहली बार मीडिया के कैमरे पर आए।

उन्होंने बिना झिझक कहा है कि अगर जरूरत हुई तो वे राजनीति में भी आएंगे। दोनों फिलहाल राजनीति की दुनिया से दूर दिल्ली में रहकर पढ़ाई कर रहे हैं।

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