मुजफ्फरपुर। बिहार ड्रग कंट्रोल लैबोरेट्री पिछले पांच वर्ष से जांच के लिए गई दवाओं की रिपोर्ट नहीं भेज रही है। रिपोर्ट नहीं मिलने से संदिग्ध दवाएं बाजार में बिक रही हैं। लैबोरेट्री में 2016 से जांच रिपोर्ट फंसी हैं। पांच वर्षों में 59 सैंपल जिले से गए थे। इस वर्ष 14 सैंपल दुकानों से लिए गए, जिनमें 13 को बिहार ड्रग कंट्रोल लैबोरेट्री और एक को गुवाहाटी जांच के लिए भेजा गया है। दवाओं की जांच रिपोर्ट 15 से 20 दिन में भेज दी जानी है, लेकिन वर्षों तक रिपोर्ट नहीं आ रही है। बिना जांच रिपोर्ट आए दवाओं की गुणवत्ता की पहचान नहीं हो पाती है।
लैबोरेट्री में दवाओं में केमिकल तत्व की मात्रा, इसकी गुणवत्ता और असली-नकली की जांच की जाती है। जांच में देखा जाता है कि दवा अगर पारासिटामोल है तो उसमें पारासिटामोल कितनी मात्रा में है। किसी भी दवा में 90 प्रतिशत तक उस दवा का तत्व होना चाहिए। यदि एक प्रतिशत भी वह कम है तो दवा संदिग्ध मानी जाती है। इसकी जांच के लिए लैब में भेजा जाता है।.
बिहार ड्रग कंट्रोल की लैबोरेट्री में सभी तरह की दवाओं की जांच नहीं होती है। बीपी, शुगर और ब्लड क्लॉटिंग की जांच के लिए लैब के पास री-एजेंट और मशीनें नहीं हैं। इसलिए दवाओं की जांच के लिए पूरे बिहार से सैंपल गुवाहाटी भेजे जाते हैं। वहां से भी रिपोर्ट आने में लंबा समय लगता है। बिहार की लैबोरेट्री में पारासिटामोल, सर्दी-खांसी, जिंक, ओआरएस, आयरन और फॉलिक एसिड जैसी दवाओं की ही जांच हो पाती है।
सैनेटाइजर की भी नहीं मिली रिपोर्ट
जिले से ड्रग कंट्रोल लैबोरेट्री को बाजार में बिक रहे सैनेटाइजर के भी सैंपल भेजे गए थे, लेकिन इसकी रिपोर्ट भी जिले को नहीं मिली है। इसके अलावा पारासिटामोल, जिंक सल्फेल, आयरन की गोलियों की जांच रिपोर्ट इस वर्ष लैबोरेट्री को भेजी गई है। ब्ल्ड क्लॉटिंग की एक दवा का सैंपल गुवाहाटी भेजा गया है। अभी वहां से भी रिपोर्ट आनी बाकी है।
दवाओं की जांच लैबोरेट्री में की जा रही है। मैन पावर की कमी है और कुछ मशीनें नहीं हैं। इसके लिए सरकार को लिखा गया है। वह जल्द ही जाएंगे। इसके बाद जांच में देरी नहीं रहेगी।
-योगेंद्र, चीफ ड्रग एनालिस्ट, बिहार ड्रग कंट्रोल लैबोरेट्री, पटना
INPUT: HINDUSTAN