मुजफ्फरपुर। सालों जर्जर सड़कों पर हिचकोले खाने, इसके निर्माण को धरना-प्रदर्शन करने, अधिकारियों व जनप्रतिनिधियों से गुहार लगने के बाद शहर की कई सड़कें बनाई तो गईं, लेकिन बनने के साथ ही टूटने भी लगीं।
कुछ ऐसी भी सड़कें हंै जो अभी पूरी तरह से बनी भी नहीं, लेकिन टूटने लगी हैं। सड़क के नहीं टूटने की तीन से पांच साल तक की गारंटी होती है। इसके विपरीत सड़क से गिट्टी-बालू अलग हो जाती है। निर्माण के दौरान न तो प्रशासन घटिया सामग्री के प्रयोग को रोकने के प्रति सजग रहता और न ही अभियंता मौके पर उपस्थित होना जरूरी समझते।
शहर की कई सड़कें बीमार, निगम नहीं कर पा रहा उपचार
शहरी क्षेत्र में कई सड़कें बीमार हैं। इनका उपचार नहीं हो पा रहा है। केदारनाथ रोड, साहू पोखर रोड, रज्जू साह लेन, बीबी कालेजिएट रोड, मझौलिया रोड, बालूघाट बांध रोड, बेला रोड, कृष्णा सिनेमा के सामने वाली रोड, सिकंदरपुर सीढ़ी घाट रोड समेत तीन दर्जन से अधिक सड़कें पूरी तरह जर्जर हो चुकी हैं। इनका निर्माण नहीं कराया जा रहा है। सड़कों के निर्माण की जिम्मेदारी नगर निगम, जिला परिषद, डूडा एवं पथ निर्माण विभाग के पास है। सरकार की विभिन्न योजनाओं के माध्यम से इन संस्थाओं को सड़क निर्माण के लिए लाखों-करोड़ों रुपये का आवंटन किया गया। योजनाओं को मूर्तरूप देने में उनकी निष्क्रियता जनता को जर्जर सड़कों पर हिचकोले खाने के लिए बाध्य कर रही है।
जांच रिपोर्ट ओके तो क्यों टूट रहीं सड़कें
जमीनी हकीकत से दूर लैब जांच में सड़क निर्माण में प्रयुक्त सामग्री मानक के पैमाने पर खरी उतरती है। अब सवाल उठता है कि यदि निर्माण सामग्री जांच में ओके है तो फिर बनने के साथ ही सड़क क्यों टूट जाती है? ऐसे में सामग्री जांच रिपोर्ट भी सवालों के घेरे में हैै।
…और काट दी जाती सड़क
जिन सड़कों के निर्माण के लिए भागदौड़ करते-करते मोहल्लावासियों की चप्पलें घिस जातीं, आलाधिकारियों से जनप्रतिनिधियों तक कई वर्षो तक चिरौरी करनी पड़ती या विभिन्न योजना मद से करोड़ों रुपये खर्च किए गए उनको कभी पानी की पाइप लाइन बिछाने तो कभी केबल डालने के लिए काट दिया जाता है। और तो और काटी गईं सड़कों की मरम्मत न करके ऐसे ही छोड़ दी जाती हैैं।
सड़क के टूटने का किया जाता इंतजार
जब तक सड़क पूरी तरह से टूटेगी नहीं निर्माण के लिए निविदा कैसे निकलेगी? पूरी सड़क के निर्माण की निविदा होने पर ही कमीशन का खेल हो पाएगा। जी हां, बस कमीशन के इसी खेल के चलते सड़क पर बने छोटे-छोटे गड््ढों की मरम्मत नहीं कराई जाती है। समय से उनकी मरम्मत कर दी जाए तो सड़क लंबे समय तक चलेगी। इसे पूरी तरह से टूटने के लिए छोड़ दिया जाता है।
कागज पर रखरखाव, जमा राशि की बंदरबाट
पीसीसी हो या अलकतरा वाली सड़क, नए नियम के तहत संवेदक को पांच साल की गारंटी देने के साथ-साथ उसके रखरखाव का जिम्मा भी लेना पड़ता है। इसके लिए संवेदक द्वारा अग्रधन व जमानत के तौर पर जमा राशि से 10 प्रतिशत की कटौती कर उसे रखरखाव मद में संबंधित विभाग रख लेता है। रखरखाव की निर्धारित अवधि समाप्त होने के बाद ही जमा राशि लौटाई जाती है। हकीकत यह है कि गारंटी अवधि में रखरखाव तो दूर सड़क टूटने पर उसे राबिस से भर दिया जाता है। छोटी कल्याणी रोड के संजय गुप्ता ने कहा कि शहर की कई सड़कें जर्जर हैं। लोग परेशान हैं, लेकिन इसकी चिंता किसी को नहीं है। सबसे अधिक परेशानी स्कूली बच्चों व कालेज की छात्राओं को होती है। कल्याणी के अजीत कुमार ने कहा कि सड़क निर्माण के नाम पर नेता और अधिकारी सिर्फ सब्जबाग दिखाते हैं। करोड़ों रुपये की योजना की बात करते हैं, लेकिन जमीन पर सड़क नहीं बनती।
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