बंदी के कगार पर Bihar के 3 हजार राइस मिल, कम कस्टम ड्यूटी के चलते नेपाल जा रही धान, 30 हजार रोजगार पर संकट

काेराेना काल की मंदी से उबरने और रोजगार के अवसर बढ़ाने काे सरकार का जाेर है। फिर भी बिहार के मुख्य उद्योगों में शामिल राइस मिल के सामने संकट कायम है। कारोबार लगभग ठप हाेने से सूबे के 3000 राइस मिल में करीब 1500 मुकदमे और अन्य कारणों से बंद हैं। बाकी में से भी अधिकतर बंदी के कगार पर हैं। कुल मिला कर इस उद्योग पर ही संकट है। वजह सरकार की सख्ती में कमी और नीतियों में खामी है। कस्टम ड्यूटी 5 प्रतिशत कम हाेने के कारण बिहार से धान नेपाल के राइस मिल काे जा रहा है। यहां के मिलर इससे परेशान हैं। इन मिल पर बांग्लादेश में चावल की मांग कम हाेने की भी मार पड़ रही है।




पहले बांग्लादेश से धान यहां के मिल में आता था। वापस चावल बांग्लादेश जाता था। लेकिन, वहां तकनीक उन्नत हाे जाने से धान बिहार नहीं आता है। इसलिए यहां मिलर का 30 प्रतिशत तक कारोबार कम हाे गया है। एक बड़ी वजह नेपाल में चावल पर कस्टम ड्यूटी 10.5 प्रतिशत हाेना भी है। नेपाल काे चावल से सस्ता धान खरीदना ही लगता है। खामियाजा सूबे के राइस मिलरों काे भुगतना पड़ता है। बिहार राइस मिलर्स एसोसिएशन के अनुसार सरकार की नीतियों के कारण कारोबार आधा हाे गया है। 1000 से अधिक छाेटे मिल काे काम नहीं मिल रहा और 15 से 20 हजार लाेगाें के रोजगार पर संकट है।


समाधान संभव, यदि उत्तर प्रदेश की तरह धान नेपाल भेजने पर लगाई जाए पाबंदी


1 यूपी से सबक लेना चाहिए, सरकार की सख्ती जरूरी
लघु उद्योग भारती के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और उत्तर बिहार के प्रमुख राइस मिलर श्याम सुंदर भीमसेरिया कहते हैं- काेराेना के कारण दाे साल में राइस मिलरों की कमर टूट गई। पहले बांग्लादेश में धान की उपज अधिक हाेने और राइस मिल नहीं रहने से चावल का अच्छा निर्यात हाेता था। यह अब बंद है, क्योंकि नेपाल की तरह वहां भी मिल बढ़ गए। उसने भी चावल पर ड्यूटी बढ़ा। अब बिहार में राइस मिल काे बचाने और रोजगार बढ़ाने काे यूपी सरकार की तरह नेपाल धान भेजने पर सख्ती से राेक जरूरी है।


2 चैंबर ने भेजा त्राहिमाम पत्र-नीतियों में बदलाव हो तभी मिलेगी राहत
नॉर्थ बिहार चैंबर ऑफ कॉमर्स ने सरकार काे त्राहिमाम पत्र भेजा है। चैंबर के महासचिव सज्जन शर्मा ने पत्र में कहा है कि सरकार काे नीतियों में बदलाव कर शीघ्र यूपी की तरह नेपाल धान भेजे जाने पर पाबंदी लगानी चाहिए। उन्होंने कहा कि यदि ऐसा नहीं हुआ, ताे बिहार का यह प्रमुख उद्योग पूरी तरह से बर्बाद हाे जाएगा।


3 पुराने उद्योग इस तरह बंद होंगे तो नए नहीं आएंगे
राइस मिलर्स एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष रामकुमार झा ने कहा कि झारखंड अलग हाेने के बाद बिहार में राइस मिल प्रमुख उद्योगों में से एक बचा। सरकार की नीतियों के कारण छाेटे उद्यमी मिल बंद कर रहे हैं। धान नेपाल और पंजाब चला जाता है। बाद में सड़ा-गला धान पैक्स के जरिए राइस मिल काे दिया जाता है। इससे क्वांटिटी और क्वालिटी दाेनाें प्रभावित हाेती है। राइस मिलरों पर संकट बढ़ रहा है। 1500 राइस मिल मुकदमों में फंसे हैं। इस उद्योग बचाने के लिए सरकार काे नीतियां बदलनी हाेगी।


किसानों को भी हाे रहा है आर्थिक नुकसान
बिहार में प्रतिवर्ष औसतन 90 लाख मीट्रिक टन धान की उपज हाेती है। सरकारी खरीद समय से नहीं होने के कारण आधा से अधिक धान किसान औने-पाैने दाम पर व्यापारियों काे बेचने काे मजबूर हाेते हैं। आढ़ती इसे नेपाल, पंजाब आदि जगह भेज देते हैं। नेपाल में धान जाता बीज के नाम पर है। लेकिन, कस्टम ड्यूटी कम हाेने के कारण राइस मिल काे इसका फायदा मिलता है। नेपाल सरकार ने अपने फायदे के लिए चावल पर कस्टम ड्यूटी बढ़ा धान पर कम कर दी।


राइस मिल काे जरूरत के मुताबिक धान मिलना चाहिए। यह पूरे बिहार का मामला है। लेकिन, कृषि विभाग काे इस पर निर्णय लेना है। राइस मिलरों की ओर से प्रस्ताव आने पर हम सरकार काे भेजेंगे। – परिमल कुमार सिन्हा, महाप्रबंधक, उद्योग विभाग

INPUT:Bhaskar

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