” एक ग्राम की व्यथा “

व्यथा,पीड़ा,कचोट,दुख कहीं ना कहीं एक दूसरे से जुड़े हुए हैं।यह शब्द जहां भी उपयोग होता होगा,गम का ही जिक्र होगा।आज मैं आपको इंसानों की पीड़ा नहीं बल्कि एक ग्राम की पीड़ा को शब्दों में बयां करना चाहता हूँ।क्या ग्राम भी मनुष्यों की भांति दुखी हो सकते हैं? मेरा जवाब मिलेगा,हाँ,पर क्यों?ठीक उसी प्रकार जैसे कोई मनुष्य अपने को पढ़ाता है,लिखाता है ताकि बड़ा हो,वह उसका सहारा बने,जब वह बच्चा बड़ा हो अपने इस कर्तव्य को भूल जाता है तो वह माता पिता व्यथित हो उठते हैं,ठीक उसी प्रकार की स्थिति एक ग्राम की होती है,उसे अपने लोंगों से बहुत अपेक्षा होती है।वह भी सोचती है की उसके बच्चे जब बड़े हो जाएंगे तो उसे भी विकसित करने का प्रयास करेंगे और जब वही बच्चे अपने कर्तव्यों से विमुख हो जाते हैं,तो वह ग्राम व्यथित हो उठती है।

एक ग्राम की यह अभिलाषा होती है मनुष्य की भांति वह विकसित हो,आगे बढ़े,वर्तमान समय के साथ कंधा से कंधा मिला चले।इतना ही नहीं उसकी यह भी अभिलाषा होती है की जो लोग उसके परिसर में रह रहें हैं,वह उसे आगे बढ़ाने में मदद करें और जब ऐसा कुछ नहीं होता है तब शायद वह ग्राम व्यथित हो उठता है और कराह उठता है।उक्त की पीड़ा की आवाज सुनाई नहीं देती,दिखाई नहीं देती बल्कि गूँजती हैं,उन कानो में जिन से उक्त ग्राम बेइंतिहा प्रेम करती है।

ऐसा ही एक ग्राम है “लदौर”,जो मुज्जफरपुर जिला,बिहार में स्थित है।उक्त ग्राम की अजब स्थिति है।एक समय में उक्त ग्राम को आदर्श की उपाधि प्राप्त हुई थी,वर्तमान में उक्त ग्राम आदर्श से कोसों दूर है।जहाँ ग्राम सदियों से एक 300 मीटर पुल के लिए जूझ रहा है,वहीं दूसरी और एक अस्पताल,हाई स्कूल और अपनी भूतपूर्व ख्याति पाने के लिए जूझ रहा है।ग्राम के कई व्यक्ति बड़े पदों पर आसीन हैं,पर वह ग्राम के प्रति अपने कर्तव्यों से विमुख है।उन्हें ग्राम के विकास से कोई लेना देना नहीं।लदौर ग्राम अपनी व्यथा ना ग्राम के उन बच्चों से कह सकती है,जो अपने निजी लाभ के लिए वक्त वक्त पर अपने मातृ स्वरूप लदौर ग्राम का ही सौदा अपने लाभ के लिए कर देते हैं और ना उन बच्चों से कह सकती है,जो उसे छोड़ शहर में जा बसे,वह भी यह सोच की हमारा लदौर ग्राम के विकास से कोई लेना देना नहीं।उक्त ग्राम करे तो करे क्या,बस मौन है,व्यथित है और इस आस में है की उसका बेटा उसकी पीड़ा को आज नहीं तो कल समझेगा और उसे उसी लगाव से विकसित करने का प्रयास करेगा,जैसा प्रयास उसने अपने बेटों के लिए किया है।उसे विश्वास है की एक दिन उसके यहाँ 300 मीटर का पुल बन जाएगा,उससे उसके बच्चे के आवागमन की दूरी कम हो जाएगी।एक दिन उसके परिसर में हाई स्कूल,कॉलेज,प्राथमिक चिकित्सा की व्यवस्था और उसके बच्चो के लिए रोजगार की व्यवस्था भी होगी।उसके परिसर से धर्मवाद, जातिवाद खत्म हो जाएगा।उसके बच्चे बिना किसी मतभेद के साथ रहेंगे और खुद भी आगे बढ़ेंगे और उसे भी आगे बढ़ाएँगे।

अंत में सिर्फ यही कहना चाहूँगा की गौर से सुनिएगा,शायद आप भी उक्त आवाज को सुन पाए,भले वह लदौर ग्राम की ना हो,पर ध्यान से उस व्यथा को सुनने पर महसूस करेंगे की वह पीड़ा भरी आवाज शायद वहीं की है,जिस ग्राम से आप संबंध रखते हों।

एक स्वरचित अनुभव🙏
अमित कुमार झा
ग्राम:-लदौर,मुज्जफरपुर
बिहार

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