बिहार के मुजफ्फरपुर में भू-अर्जन कार्यालय के ऑडिट रिपोर्ट में बड़ी गड़बड़ी पकड़ी गयी है। महालेखाकार ने जिला भू-अर्जन कार्यालय के बैंक खातों व रोकड़ बही में सवा अरब का अंतर पकड़ा है।
महालेखाकार टीम ने कहा है कि सवा अरब के अंतर पर कर्मियों ने जो सफाई दी, उसके अनुसार कोई साक्ष्य उपलब्ध नहीं कराया गया। ऑडिट टीम को बताया गया कि योजनाओं की बची हुई राशि संबंधित विभाग को लौट गई है, लेकिन लौटी राशि का कोई साक्ष्य उपलब्ध नहीं कराया गया। मामले में महालेखाकार ने भू-अर्जन पदाधिकारी से जवाब मांगा है।
नियम को ताक पर रखकर नीजी बैंक में रखा पैसा
वित्त विभाग का स्पष्ट निर्देश है कि किसी भी कार्यालय का एक ही बैंक खाता होगा व उसी से सभी लेन-देन होंगे। लेकिन महालेखाकार की टीम को भू अर्जन कार्यालय में कुल 47 रोकड़ बही मिले। कार्यालय के बैंक खातों की संख्या 48 पायी गई। इतना ही नहीं, वित्त विभाग के स्पष्ट निर्देश के बावजूद योजनाओं का पैसा राष्ट्रीयकृत बैंक में न रख निजी बैंक खातों में रखा गया है।
कहते हैं पदाधिकारी
महालेखाकार की ऑडिट सामान्य प्रक्रिया है। महालेखाकार की आपत्तियों का अध्ययन किया जा रहा है। जो आपत्ति दर्ज की गई है, उसका जवाब दिया जा रहा है। – मो. उमैर, भू-अर्जन पदाधिकारी
ऑडिट में एक और गड़बड़ी उजागर
महालेखाकार ने एक और बड़ी गड़बड़ी पकड़ी है। भ-अर्जन कार्यालय के दो बैंक खाते ऐसे मिले, जिसमें रोकड़ बही से अधिक राशि मिली। रामबाग स्थित एक बैँक के खाते में रोकड़ बही के अनुसार सिर्फ 53 करोड़ रुपये बताये गए, लेकिन जब टीम ने बैंक खाते की जांच की तो उसमें 63 करोड़ की जमा राशि मिली। यह खाता मुजफ्फरपुर-सुगौली रेल लाइन परियोजना से संबंधित थी। उसी बैंक के दूसरे खाते में भी इसी तरह की गड़बड़ी मिली, जो एनएच 77 से संबंधित थी। महालेखाकार ने भू-अर्जन पदाधिकारी से इस मामले में तुरंत जवाब देने को कहा है, ताकि आगे कार्रवाई की अनुशंसा की जा सके।
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