आपने मां दुर्गा की साधना के कई किस्से सुने होंगे। उसमें से एक मुजफ्फरपुर का भी है, जो हर किसी की जुबान पर नवरात्र शुरू होते ही चढ़ जाता है। हम बात कर रहे हैं जिला मुख्यालय से करीब 50 किलोमीटर दूर स्थित कटरा के धनौर गांव की। यहां एक बुजुर्ग 30 साल से माता की आराधना कर रहे हैं। वे जमीन के अंदर रहकर नौ दिनों तक साधना करते हैं। वह गराती बाबा के नाम से जाने जाते हैं। लोग उन्हें दूर-दूर से आते हैं और उनके बगल में बैठकर माता की आराधना करते हैं। गराती बाबा साधना के दौरान उपवास पर रहते हैं, पानी की एक बूंद तक नहीं ग्रहण करते।
तीन दिन पहले से छोड़ देते खाना-पीना
गराती बाबा की बहू रानू बताती हैं कि नवरात्र शुरू होने से तीन दिन पूर्व वे खाना-पीना छोड़ देते हैं। कलश स्थापन की सुबह जमीन में दो फीट गड्ढा खोदा जाता है। चादर डालकर उस गड्ढे में वे लेट जाते हैं। ऊपर एक तख्त रखा जाता है। उसके ऊपर मिट्टी और कलश रख दिया जाता है। फिर शुरू हो जाती है बाबा की साधना।
कुवांरी पूजन और विसर्जन के बाद पीते हैं पानी
गराती बाबा बताते हैं, जितने दिन पूजा होती है, वे जमीन के अंदर रहते हैं, सिर्फ उनका सिर बाहर होता है। नवमी के बाद वे बाहर आते हैं। फिर कुंवारी पूजन और खाना खिलाने के बाद विसर्जन करते हैं। इसके बाद गर्म पानी पीते हैं। फिर अन्न का दाना मुंह में डालते हैं। गराती बाबा की बहू बताती हैं, वे लोग भी गराती बाबा के साधना के दौरान उनके साथ बैठते हैं।
कभी बिजली चली जाती है तो फिर हाथ से पंखा झेलती हैं। हमेशा रोशनी का प्रबन्ध रहता है। आसपास भी नज़र रखती हैं ताकि कोई सांप-बिच्छू न घुस जाए। बताती हैं के जमीन में गाड़ने के कारण उनका नाम गराती बाबा पड़ गया। नौ दिनों तक साधना करने के बाद वे काफी कमजोर हो जाते हैं। चार-पांच लोग मिलकर उन्हें बाहर निकालते हैं। फिर एक दो दिनों में वे खुद चलने-फिरने लगते हैं।
INPUT: Bhaskar