मुजफ्फरपुर। एक तरफ शहरवासी स्मार्ट सिटी की परिकल्पना से ऊबने लगे हैं तो दूसरी तरफ स्मार्ट सिटी कंपनी लापरवाह कार्य एजेंसियों पर मेहरबान बनी हुई है। टेंडर लेने के महीनों बाद काम की गति नहीं बढ़ रही है, लेकिन इन एजेंसियों पर कोई कार्रवाई नहीं हो रही है। न तो उन्हें कार्यमुक्त किया जा रहा है और न ही प्रावधान के अनुसार उनपर जुर्माना लगाया जा रहा है।
स्मार्ट सिटी की करीब डेढ़ दर्जन योजनाएं लेटलतीफी की शिकार हैं। कुछ योजनाएं ऐसी हैं, जिनकी शुरुआत भी नहीं हो सकी है। लेकिन एजेसियों पर कार्रवाई करने के बजाय अधिकारी हाथ बांधे खड़े हैं। रोचक बात है कि इनमें निगम से जुड़े प्रतिनिधियों की एजेंसी भी शामिल है।
स्मार्ट सिटी की योजनाओं को पूरा करने के लिए टेंडर के साथ वक्त भी निर्धारित कर दिया गया है। एजेंसी के काम की समीक्षा के लिए भी समय निर्धारित है। प्रत्येक योजना की साल में चार बार समीक्षा की जानी है। तीन माह, छह माह, नौ माह व 12 माह पर समीक्षा होनी है। प्रत्येक तिमाही में काम की गति का भी निर्धारण है। यदि समीक्षा में उस गति से काम नहीं पाया गया तो जुर्माना का प्रावधान किया गया है।
जुर्माना टेंडर की कुल राशि का 10 फीसदी है। जुर्माना की यह भारी-भरकम राशि इसलिए निर्धारित की गई है कि इसके डर से एजेंसी सही समय पर काम निपटाएंगी। लेकिन स्मार्ट सिटी के अधिकारियों ने ही इस प्रावधान को शिथिल कर दिया है। ऐसे में कार्य एजेंसियों को देरी की छूट मिल गई है।
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