हाईकोर्ट बोला— यहां न्याय मिलना आसान नहीं, बाप-दादा ने केस किया, उनके मरने पर बेटा-पोता लड़ रहा

पटना हाईकोर्ट : यहां न्याय पाने के लिए एक जीवन भी कम, कई केस दूसरी तो कुछ तीसरी पीढ़ी लड़ रही, जजों के 53 में 26 पद खाली…सुनवाई की बारी आने तक अपीलकर्ता की मौत,फिर पेच दर पेच: यह पुरानी कहावत है…जस्टिस डिलेड इज जस्टिस डिनाइड! यानी देर से मिली न्याय, न्याय न मिलने के समान है। लेकिन, पटना हाईकोर्ट में दो लाख से अधिक मामले फैसले का इंजतार कर रहे हैं। हालत यह है कि पिछले 34 वर्षों से दीवानी मामलों की सुनवाई लगभग ठप है। सुनवाई होती भी है तो तकनीकी मसलों पर। अधिकतर मामले 30-40 वर्षों से लंबित है। एक फर्स्ट अपील तो पिछले 49 वर्षों से लंबित है। कमोबेश क्रिमिनल अपीलों की भी स्थिति ऐसी ही है। 1996 के बाद दायर क्रिमिनल अपील की सुनवाई लगभग नहीं हो पा रही है। स्थिति ऐसी है कि जब सुनवाई की बारी आती है तो पता चलता है कि अपीलकर्ता अब इस दुनिया में नहीं है। इसका नतीजा है कि कई केस दूसरी तो कुछ केस में तीसरी पीढ़ी इंसाफ के लिए लड़ रही है। मौजूदा समय में हाईकोर्ट में 1.05 लाख आपराधिक और 1.08 लाख सिविल के केस लंबित हैं। 17500 क्रिमिनल, जबकि 6 हजार फर्स्ट और लगभग इतने ही सेकेंड अपील पेंडिंग हैं। फर्स्ट अपील और सेकेंड अपील संपत्ति विवाद को लेकर होती है। जिला जज के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में फर्स्ट, जबकि सब जज और जिला जज के कोर्ट से हारने के बाद सेकेंड अपील की जाती है। 35 हजार जमानत अर्जी पर भी सुनवाई होनी है।

{पटना होईकोर्ट में इतनी बड़ी संख्या और इतने लंबे समय से मामले क्यों लंबित हैं?
-मुकदमों के अनुपात में जजों की कम संख्या बड़ा कारण है। अभी 53 की जगह केवल 27 जज हैं। जजों के सभी पदों को कभी भी नहीं भरा गया। 2015 तक जजों के कुल 43 स्वीकृत पद थे जिसे बढ़ाकर 53 किया गया। अबतक सबसे अधिक 37 जज हुए हैं। इस साल दो जज रिटायर होने वाले हैं। नई नियुक्ति नहीं हुई तो जजों की संख्या घटकर केवल 25 रह जाएगी।

{सिर्फ जजों की कम संख्या ही कारण है?
-देरी की वजह से कई बार जब मामला सुनवाई के लिए आता है तो पता चलता है कि जिस व्यक्ति ने फर्स्ट अपील या सेकेंड अपील दायर की थी, वे अब जीवित नहीं हैं। कोर्ट को तब संबंधित पक्ष को सब्स्टीच्यूशन पेटीशन फाइल करने के लिए महीने-दो महीने का समय देना पड़ता है। अगली तारीख पर किसी न किसी पक्ष की ओर से समय ले लिया जाता है। अगर पेटीशन निर्धारित समय सीमा के भीतर दायर नहीं हुआ तो विलंब को दूर करने के लिए फिर पेटीशन फाइल करना पड़ता है। यह सिलसिला चलता रहता है और केस के मेरिट पर सुनवाई शुरू नहीं हो पाती। और समय गुजरता जाता है।

{जल्दी न्याय के लिए उपाय क्या है?
-अभियान चला कर लंबित केस काे निपटाना होगा। इसके लिए जजों के रिक्त पदों को भरने की जरूरत है। जिन मामलों में लोअर कोर्ट से 10 वर्ष तक की सजा, उसकी अपील एकल पीठ सुनती और इससे अधिक सजा वाले की सुनवाई दो जजों की खंडपीठ करती है। लेकिन इनका अधिकांश समय जमानत अर्जियों पर सुनवाई में ही बीतता है।

1988 से लंबित इन 2 केस से समझिए दर्द
{सेकेंड अपील का यह सबसे पुराना मामला 1988 का है। फूलमती देवी बनाम रघिया देवी के बीच संपत्ति बंटवारे का। पहली पीढ़ी के कई लोग गुजर गए हैं। अब दूसरी पीढ़ी केस लड़ रही है। लेकिन, अभी तक केस के मेरिट पर सुनवाई हुई ही नहीं है। पिछली तारीख 26,11,2021 को मृतक की जगह बनाए गए नए प्रतिवादियों को नोटिस हुआ है।

पिता तो गए बेटा को भी न्याय नहीं
{दूसरा अपील से. अ.529/1988 राजनंदन सिंह अन्य बनाम लक्ष्मण सिंह का है। यह भी संपत्ति का मामला है। इसके दो अपीलकर्ता का निधन हो चुका है। अब उनके स्थान पर मृतक की पत्नी और बेटे बेटी को अपीलकर्ता बनाया गया है। मतलब अब दूसरी पीढ़ी को लड़ना पड़ रहा है। इसकी सुनवाई भी लंबित है।

Share This Article.....

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *